Monday, December 31, 2012

महबूब-ए-ज़िन्दगी




वो मुझे तब से चाह रही थी, जब मैं जन्मा ना था,
वो मुझे तब भी बुलाती थी, जब मैं सुनता भी ना था,
वो तो बस किस्मत ही थी... जो दरम्यान थी हमारे,
वो मुझे तब से जानती थी, जब मैं खुद को जानता भी ना था!

जब पीछे मुड के देखा, तो खुद पर मैं हंस पडा,
वो तो हर दम मेरे साथ थी, मैं ही उस से भागता रहा,
एक वक़्त मुक़र्रर था... मेरी उसकी मुलाक़ात का,
पर ये जान कर भी .. मैं उस से मुंह फेरता रहा!

पर अब मुझे भी.... उस से मुहब्बत हो गयी हैं,
डर से भरी वो "बेकार" की ज़िन्दगी ... अब ख़तम हो गयी हैं,
अब तो पल-पल का इंतज़ार है, इन निगाहों में,
मेरी आँखों में "उस" के लिए अब इज्ज़त, थोड़ी और बढ गयी है!


ज़िन्दगी .. एक रोज़ मुझ से बिछड़ जायेगी,
उस रोज ... मुझे मेरी महबूबा मिल जायेगी!


इक रोज़... इक रोज़, मुझे आज़ादी मिल जायेगी,
जिस रोज़... मुझे मौत... मौत अपने गले से लगाएगी!

Tuesday, December 11, 2012

दुल्हन





एक ज़िन्दगी, पाती कुछ ख़ास सी,
वो लम्हा, वो खोती कुछ एहसास सी!

ज़िन्दगी देने वालो ने जिसे एक अमानत माना,
उस अमानत का फ़र्ज़ .. चली अता करने, वो एक ताबीर सी!

पुराने रिश्ते, पुराने घर की कुछ यादें, जो दिल में बसी हैं,
लेकर उन्हें चल पड़ी .. बनाने नयी कहानी, वो एक किताब सी!

उन पुराने रिश्तो से गले लगकर, और कुछ चावल बांटकर,
लेकर विदा.. चली वो नए घर.. एक तराशे हुए बुत सी!

नयी हवा, नए माहौल में खुद-ब-खुद उसे ढलना था,
बिताती वो आज ज़िन्दगी, जैसे दूध में घुली चीनी सी!

Wednesday, December 5, 2012

किस को क्या पता ??






रख ज़िन्दगी को महफूज़ .. हासिल क्या होगा,
आगाज़ में पडा था रोना, सोच इसका अंज़ाम क्या होगा?

गुलिस्ताँ में, परस्तिश से .. हमने लोगो को खुश होते देखा,
जाने उनके गमो ने, उन्हें कितना परेशान किया होगा?

कहते है, उजाले हर किसी को देर-सवेर नसीब होते हैं,
कहने वालो ने जाने कितने अंधेरो का सामना किया होगा?

उम्र भर देखा, उन्होंने जाने वालो की वापसी का रस्ता,
किसे पता, किसका कारवां .. कहाँ जा कर उजड़ा होगा?

जीते जी, बस यूँ ही सोच कर.. उम्र के धागे कच्चे किये मैंने,
जाने मेरे अफसानों ने, क्या किसी का भला किया होगा?

Friday, November 23, 2012

डर




अक्सर किनारे से, लहरों और साहिल के पत्थरों को घंटो देखा करता था,
उन्ही की इस लड़ाई से, अब मैं दरिया में जाने से डरता हूँ!

कोई तो बता दे कि अब मेरी मंजिल कहाँ है,
इतना भटका हूँ कि अब घर जाने से डरता हूँ!

उसने तो सही ही कहा था, कोई झूठ नहीं ज़माने से,
जो हुआ हश्र उसका, देख के ... मैं सच से डरता हूँ!

इतना टूटा हूँ कि अब जुड़ने से डर लगता हैं,
शिकायत नहीं मुझको जोड़ो से, पर मैं इन जोड़ो के बीच की दरारों से डरता हूँ!

डर है अब के मैं जो टूटा ... दोबारा ना जुड़ पाऊंगा !


Friday, November 9, 2012

सबक






भूल को भुलाने से भुलावा छलावा बन जाता हैं,
मिले जो सबक भूलो से, उसे आगे बढाते जाओ!

बादलो का क्या, कभी घिरते ... तो कभी बरस कर भी चले जाते हैं,
पर याद रखना कि जो गरजते है, उन बादलो से अपनी नज़र हटाओ!

नज़रिए की नज़र से नहीं, नज़र के नज़रिए से बात बनती हैं,
हो सके तो अपनी नज़र में दूसरो की नज़र लाओ!

कभी आंसू, कभी ख़ुशी, कभी चोट तो कभी मरहम मिला,
किस से क्या मिला, ये ना सोच.. बस कदम बढ़ाते जाओ!

Wednesday, October 31, 2012

सवाल-ए-फितरत-ए- जिंदगी





जो हुआ, सो हुआ,....पर मेरा सवाल है सब से,
जो हुआ, क्यों हुआ??? ..... क्या ये ज़रूरी हैं!

मिलना-बिछड़ना, खेल है या ये मेल है किस्मत का,
इंसान का दोनों पे ही रोना ... ये रोना, क्या ज़रूरी हैं!

कभी गुस्सा, कभी हंसना.... कभी पाना, कभी खोना,
मिटटी के पुतले का यूँ जीना....... यूँ जीना, क्या ज़रूरी हैं!

कभी पेड़ सी झूमती... तो कभी बर्फ सी पिघलती,
ऐ ज़िन्दगी.. तेरा मुझे नचाना, ये नचाना, क्या ज़रूरी हैं!

हाथ की नियति काम को करना और दिमाग का ... करवाना,
फिर क्यों ऊपर वाले को पूजना... ये पूजा, क्या ज़रूरी हैं!

होश में आऊं तो देखू.... बंद आँखों से सोच पडे,
अपने काल से डरते रहना... ये डरना, क्या ज़रूरी हैं!

Tuesday, October 23, 2012

वो रात.... वो जज़्बात





ये उस रात की बात है, जब हम आस-पास थे,
हलकी सी बारिश हो रही थी... और दिल में बरसते जज़्बात थे!
यूं तो हम चुप थे.. और वो भी खामोश थे,
पर नज़र कह रही थी... ये नहीं कोई आम रात हैं!

Wednesday, October 10, 2012

पुरानी आदते





जब कभी भी याद तेरी आती हैं ,
आँखों में एक तेज़ बरसात हो आती हैं !

हो के अब दूर तुझ से , हमने तुझे पास पाया ,
गलतियाँ कल की , मुझे आज भी तडपाती हैं !

याद आता है , तेरा मेरे चश्मे को यूं ही साफ़ करते रहना ,
इन गीली आँखों से अब ... मुझे हर चीज़ धुंधली दिखाई देती हैं !

इस तक्कलुफ़ को मैंने खुद अपनाया है कि रोज़ तुझे याद करता हूँ ,
वरना कहाँ ये धड़कने... मुझे चैन से जीने देती हैं !

अब तो अफ़सोस हैं कि हम यूँ दूर हो गए,
पर जाने क्यों हर अक्स में तू ही नज़र आती हैं !

Tuesday, October 2, 2012

भाग-म-भाग




इंसान को खुशियों से इस कदर मोहब्बत होती हैं !
अपनी खुद की शख्शियत से भी नाराजगी .. उम्र भर रहती हैं !

जिसको आशिकी मिली .. वो पैसे के लिए भाग रहा हैं ,
दौलत भरे हाथो की आँखें .. छूटे रिश्तो के लिए तरसती रहती हैं !

आती जाती लहरों से तो वास्ता कभी रखा नहीं इंसान ने ,
पास आते सायो से हमेशा उसकी नाराज़गी रहती हैं !

छोड़ के ये जिस्म .. बन रूह हर मसले से निजात पाना चाहता हैं ,
और , उन रूहों को फिर से शरीर पाने की तलब रहती हैं !

कहना ही क्या .. किस किस चाहत की कसक पे रो रहा हैं,
मिल जाए खुदाई भी .. तो क़ैद होने की बैचैनी बनी रहती हैं !

Tuesday, September 25, 2012

अब कैसे दिल को समझाए...






हमें तो लगा की कुछ लम्हे सरक रहे हैं ,
जाने ये , कई साल .. कैसे गुज़र गए!

रंज-ए-तन्हाई का कोई सबब ना मिला ,
कई बेवफा रातो के गुमनाम पल , यूँ ही हम से विदा हो गए!

बरसात की एक रात में , मेरे कातिल मुझ से मिलने आये ,
भीगे दिल , नाम आँखें लिए .... वो यूँ ही चले गए!

रात ख्वाब में , एक जाम और उस में मदमस्त मय दिखी,
पी के प्याला जो कदम लडखड़ाये , सारे जाम मुझे छोड़ के चले गए!

मांझी की दीवारों पे कुछ यादो की तस्वीरे अब भी टांग रखी हैं ,
यार तो सब चले गए , सिर्फ सुराख -ए-दिल ही बाकी रह गए!

मुस्कुराती सी तेरी हर बात और .. तेरे वो नगमे ,
हम बढ के भी आगे .... अपनी राहो में , अपने साए को तेरी नज़र कर गए!

Thursday, September 13, 2012

ज़रा .. आ के देखो!







एक अरसा हुआ, आ के देखो , हम कैसे दिखते हैं ,
हम आज भी , हर अक्स में .. बस तुझे ही देखते हैं !

तुमने हर एक बात , कानो से सुनी ... आँखों से देखी हैं ,
हम हर एक अलफ़ाज़ को आज भी दिल से देखते हैं !

ज़िन्दगी की बाज़ी में , कभी जीते तो कभी हम हारे हैं ,
तुमसे कितना हारे -जीते ... आज ये हिसाब देखते हैं !

कहते है , आँखें ही दिल की जुबान होती हैं ,
आओ करीब हमारे , आज इस किताब के अलफ़ाज़ देखते हैं !

हमको दीवाना बताकर , बुत पत्थर मार के चले गए ,
आँखों से किन के सावन बरसे , गिनती उनकी देखते हैं !

कहते रहे कई अफ़साने , मुझे राहे बताते रहे ,
हम आज तलक अपनी नहीं , अपने जाम की चाल देखते हैं !

Sunday, August 26, 2012

करनी... भरनी !




हर गुनाह की एक सज़ा मुक़र्रर होती हैं,
हर किसी को इसी दुनिया में .....वो ....सज़ा मिलती हैं!

कितना ही कोई भाग ले नसीब से... ज़िन्दगी से,
खुद के ज़मीर की नसीहत सबको मिलती हैं!

अच्छे-बुरे सभी कर्मो का.. लेखा यहीं निकलता हैं,
बदी को आंसू .. और नेकी को शोहरत.. यही मिलती हैं!

कोई कितना भी हो जाए.. आदी इस जान का,
ये ज़िन्दगी, अंत में .. आगाह किये बिना.. सज़ा दे जाती हैं!

जहां-पनाह, आलम-ए-आलम देखे.. फकीरों की फटी चादर भी देखी ,
पर जाना कि.. सूरज की रोशनी और चाँद की चांदनी.... सबको बराबर मिलती हैं!

आसरा बारिश ने दिया.. तो कहीं आतिश ने भी सहारा दिया,
खुदा कि खुदाई में.. बन्दों को हर ज़र्रे में बशर मिलती हैं!

"अज़ल" से डरो नहीं, ये एक अजब सी खामोशी हैं,
सबसे बड़ी सुकून-ए-ज़िन्दगी.... उसी की बदौलत मिलती हैं!

Wednesday, August 15, 2012

संग्राम






राहें सुनसान हैं,
लोग अनजान हैं.
मगर , चल रहा हैं सफ़र
कभी तो मंजिल मिलेगी !

थक रहे हैं कदम
ना बचा कोई हमदम
रात हो गयी स्याह और,
कभी तो रौशनी मिलेगी !

वक़्त ने भी कहा,
कुदरत का कहा ....भी नहीं सुना,
करता रहा जो मन करा
कभी तो मेरी जीत होगी!

पानी फिर चढने लगा
धैर्य मेरा टूटने लगा
फिर से थोड़ी और हिम्मत करूं,
शायद तभी पूरी ताबीर होगी!

रोज़ लड़ रहा हूँ मैं,
थोड़ा और कट रहा हूँ मैं ,
देख मेरा बहता लहू और टपकता पसीना ,
शायद मेरी परेशानियाँ भी ... घबरा जाती होगी!

Sunday, August 5, 2012

तसव्वुर-ए-सनम






कुछ भी कर लूँ, तुझे भुला नहीं पाता,
यूँ भी मैं अपनी ही लकीरों से , जीत नहीं पाता !

हर एक शब् , तेरे ही तसव्वुर में जिया करता हूँ ,
मैं चाह कर भी , तेरी चाहत को रोक नहीं पाता !

दर्द उठता हैं , टीस भी हरदम रहती हैं ,
मैं इस दर्द के सिवा .. कुछ पास रख नहीं पाता !

डर लगता हैं कहीं राह में हम टकरा ना जाए ,
मैं इस दिल पे यूँ भी एहतियात नहीं रख पाता !

सलाह मशविरा तो हर ख़ास -ओ -आम ने दे डाला ,
तेरे तसव्वुर में फिर , मैं कुछ और सोच ही नहीं पाता !

दुआओ में हसरत खुद के वजूद की नहीं ... तेरी सलामती की हैं ,
अपने लिए तो मैं आज भी हाथ उठा नहीं पाता !

Wednesday, July 18, 2012

आज भी......हम!!






आज उनके देखे से एक गुमान हो गया ,
शायद ये दिल किसी और की अमानत में हैं !

कहने को आज भी हम किस्सों कहानियों में होते है ,
लेकिन दिल से हम आज भी आप ही के ख्यालों में हैं!

देखा है गुल को , हवा को ... मदहोश करते हुए,
इल्म है हमें ..... ये खुदाई भी, आप ही के एहसान से ही हैं!

मोड़ कई गुज़रे , पर इस मोड़ से हम कैसे गुज़रे ?
डर उनकी ना से ज्यादा ..... उनके हाँ कह देने से हैं!

कैसे कहे हम जो कहना चाहते है आपसे,
हर लफ्ज़ की कश-म-कश का अंत , तेरे इकरार से ही हैं!

Friday, July 6, 2012

तलाश-ए-हमसफ़र





अभी सर्दी की धूप सी, कुछ हलकी सी... बन रही हैं,
होगी तू जब सामने... मेरी तकदीर बन जायेगी!

ख्वाबो में कभी-कभी.. तेरा अक्स बनाने की कोशिश की हैं,
जाने कब तलक, वो तस्वीर पूरी हो पाएगी!

सूरत ले के निगाहों में, चल पड़ा हूँ मैं राहो पे,
लगता हैं ये राहे ही .. अब मेरी मंजिल बन जायेंगी!

आती-जाती राहो पे, मैं तेरे निशाँ ढूंढता हूँ,
सफ़र से हमसफ़र.. जाने कब ये हो पाएगी!

हसरतो की गुलशन में, इमारते तो बहुत बन रही हैं,
होगी तू साथ तो, इन इमारतों में छते भी बन जायेगी!

Friday, June 29, 2012

कभी आप भी मुझे ऐसे मिलें!






एक इल्तजा थी कि ए खुदा मुझे सुकून मिले,
उस ख्वाहिश के बदले ही मुझे आपके पहले दीदार मिले!

उम्मीद का दामन थामे.. मेरी तरसती उम्मीदें,
रब्बा .. शायद अगले मोड़ पर मुझे नया मेरा रब मिले!

काश ऐसा हो कि हर रोज़ जब मेरी आँख खुले,
मेरा साया.. मेरा हमदम ... मुझे मेरे पास मिले!

चिराग में बंद किसी जिन्नाद सी मेरी खुशियाँ,
दुआ है खुदा से .. बस तेरी मोहब्बत की मुझे तपिश मिले!

मकतब-ए-दुनिया में वैसे तो मैने कुछ नहीं जाना,
मुझे तो सभी रोशन रंग.. बस तेरी उस एक झलक में मिले!

तेरे नखरे, तेरी सादगी... कही ले ले ना जान मेरी,
खुदा-या अगर मिले .. तो मुझे मौत भी उसी की पनाहों में मिले!

Saturday, June 23, 2012

कशमकश-ए-ज़िन्दगी .... तेरा मैं क्या करूँ?





कशमकश-ए-ज़िन्दगी भरपूर हैं, नामंजूर हैं...
ना प्यास-ए-ज़िन्दगी सही जाती हैं,
ना कासाह-ए-आब-ए-मौत गले उतरता हैं!

बिछड़ते यार ने मुख्तलिफ जज़्बात बना दिए...
ना उसकी उम्मीद-ए-ज़िन्दगी रोके बनती हैं,
ना खुद का जुदाई-ए-गम सहा जाता हैं!

मकतब-ए-दुनिया में जाने हमने क्या क्या सीखा...
ना वो बचपन की चादर छूटते बनती हैं,
ना ये सयानापन हमे ढ़ाक पाता हैं!

इन शाम की तन्हाईयों को किन रंगों से भरूँ...
ना दिन की चमक, इन्हें उजला बना पाती हैं,
ना रात का सन्नाटा इन्हें कोई आवाज़ दे पाता हैं!

शमा-ए-महफ़िल बना के, खुदा ने सितम कर डाला...
खुद की जलन तो सीने में दबी रहती हैं,
परवाने की मौत का इलज़ाम भी सहना पड़ता हैं!

Thursday, June 14, 2012

सुरूर-ए-सनम





ज़िन्दगी हर एक मोड़ पर ... एक नया रंग दिखा रही हैं..
पर मुझे .. हर तस्वीर में तू ही नज़र आ रही हैं!!
इसे जादू कहूँ .. या कहूँ .. सुरूर तेरा,
आशिकी, मुझे शोलो में भी .. खिलते तबस्सुम दिखा रही हैं!

कभी कभी कोई बहुत याद आता हैं,
नाम उसका जुबान पे यूँ ही आ जाता हैं....
हम तो उन्हे कभी भूले नहीं थे अपनी यादों में भी,
फिर भी वक़्त अक्सर...उनका ज़िक्र.. हम से कर जाता हैं!

साकी को हो गया गुमान.. कि हम फिर गम-ए-तन्हाई में खो गए...
वो आये पास.. और फिर से जाम भर के चले गए.
बस पल दो पल की यादें ही है "उनकी" बस हमारे पास!
असल ज़िन्दगी तो "वो" अपने साथ ले के चले गए!!

Wednesday, May 30, 2012

बिन तेरे सनम





मैं जब भी कभी उदास होने लगता हूँ,
मैं आंखें मीच कर , तेरा दीदार कर लेता हूँ !

हवा, पानी, घटा और मिटटी , सावन में सब मिल जाते है,
मैं भी ऐसे ही तुझ से मिलने की ख्वाहिश रखता हूँ !

तेरे नाम के सदके ले लेकर , मैं मंदिर मस्जिद जाता हूँ ,
मैं तेरे अरमानो का दम लेकर .. हर पेड़ से मन्नत बांधता हूँ!

मुश्किल तो एक ही हैं .. कि दीदार-ए-सनम को हम तरस गए ,
तेरी तस्वीर को अब मैं अपना हमसाया .. जो मानता हूँ!

सोचा था कुछ हसीं पलो के लिए .. कुछ आंसू बचा के रख लेंगे,
गिनती तो अब मैं भूल गया .. बस राहो पे निगाह में रखता हूँ!

जानता हूँ , तू मेरा नसीब नहीं है .. फिर भी
मैं अक्सर खुदा से .. तेरे लिए .. तकरार किया करता हूँ!

Thursday, May 17, 2012

ये कैसा नज़ारा





अपने दिल के किसी एहसास में कही गुम सा,
अपने ही गम में डूबा , ये आलम ग़मगीन खामोश सा!

रतजगो में बैचैनी , अंधेरो में सब उदास हैं,
फलक पे भी आजकल , दिखता नहीं कोई ज़र्रा आफताब सा!

बियाबाँ सी महफ़िल , अंधेरो में खोयी,
क्या चलेगा कोई संग मेरे .. कोई मेरे हमसफ़र सा!

आँख खुलती नहीं , लहू इस कदर है देख लिया,
क्या दोनों में से एक का भी दिल नहीं था इंसान सा!

दिल की कही .. अब तक ना सुन सका , ना कर सका,
अपनी ही करनी पे रोता.. मैं कमबख्त बदनसीब सा!

सोचता हूँ क्या किसी की .. अर्ज़ अब सुनेगा वो,
वो (खुदा) भी होगा आजकल .. शायद कुछ मसरूफ सा!

Monday, April 30, 2012

इश्क





ये सोचा ना था की इश्क एक सज़ा बन जायेगी
ज़िन्दगी, इन हाथो से ये ... यूँ रेत की तरह निकल जायेगी!

हर आदमी की निगाह में एक सवाल पनप रहा हैं मेरे लिए,
क्या पता था मेरी उलझन.. इस जहान की मुसीबत बन जायेगी!

वो उन राहो पे संग तेरे... घंटो मीलों का लंबा सफ़र,
क्या पता था कल यही राहें .... मेरा सफ़र बन जायेंगी!

कभी-कभी अकेले में, तेरी याद लिए बैठ जाता हूँ,
कभी सोचा ना था, ये मेरी मिल्कियत बन जायेंगी!

लोग कहते थे .. कि इश्क खुदा से भी बढकर हैं,
क्या पता था.. कि एक मुलाक़ात मुझे काफ़िर बना जायेगी!

Thursday, April 12, 2012

उम्मीद और ज़िन्दगी





हर एहसास को दबा के.. होठों पे हँसी रखी हैं,
आँखों की नमी हमने .. दिल में छुपा रखी हैं!

मिलने वाले अक्सर.. तेरा पता.. मुझसे पूछते हैं,
ना कह के "मेरा दिल"... हमने उन्हें एक गली बता रखी हैं!

राहो पे चलते-चलते, एक गुमान ये हो गया हमे,
शायद मेरे साए ने फिर तेरी गली पकड़ रखी है!

कभी पत्थर की तरह, मूक सा.. मैं तुझे जाते देखता रहा,
उस दिन जाना, इस दिल ने कितनी आब-ए-दीद बचा रखी हैं!

कहते है.. दिल चलता है तो हम चलते हैं,
पर हमने इस धड़कन को .. तेरी जागीर बना रखी हैं!

किसी दोराहे की दो रास्तो के एक कोण की तरह,
हर मोड़ पे, ज़िन्दगी और मौत ने मुझे तेरी तस्वीर दिखा रखी हैं!

कुछ दरख़्त बचे हैं, इस उजाड़ में अब भी,
बा-वस्ता होगा मेरा भी चमन.. ये उम्मीद लगा रखी हैं!

Friday, March 30, 2012

हिदायते



परछायिओं को कहाँ जुबान होती हैं,
वो बस आहट पर हिला करती हैं!

देख कर, सह कर... हम तो चले जाते हैं,
मांझी की दीवारों पे केवल आह रह जाती हैं!

कितना ही कोई वक़्त को आवाज़ लगा ले,
छूटी हुई जवानी वापिस नहीं आती हैं!

शायद गंगा-जमुना भी नहीं डरी होंगी किसी से इतना,
कुछ लोगो की रूह.. उनका चेहरा देख के जितना डर जाती हैं!

ये पहेली ज़िंदा रहते किसने सुलझाई हैं,
सदा-ए-मौत किसको कब सुनाई देती है!

प्याला-ए-मौत तो एक ना एक रोज़ सबको नसीब होगा,
देखे .. ये जिंदगानी किसको कितना दौडाती हैं!

Saturday, March 17, 2012

कुछ ऐसा हो !





कुछ ऐसा हो कि सबका गम कम हो,
मिले जो राह में, वो कुछ अजनबी कम हो!

कहा है उसने आज भी ना मिल पाउँगा,
खुदा-या .. मेरे जनाजे पे, उसकी मसरूफियत कुछ कम हो!

मुझे तो राख किया उसने, पर ऐ मौला,
मुझे जलाने वाले के हाथो में जलन कम हो!

घूमती, भागती दुनिया में.. उठता, गिरता इंसान,
जो छूटा, बस .. दिल में उसकी खलिश कुछ कम हो!

वो मासूम...आज भी आँखें मूंद कर, सपने देखना चाहता हैं,
सोचता हैं... कि शायद वहां दुनिया का स्याहपन शायद कम हो!

कहने को आज भी अक्सर हम हंसा करते हैं,
शायद मेरे हंसने से किसी के कुछ गम कम हो!

खड़े पेड़ो की तरह मूक हो के, बहुत कुछ देखा हमने,
दुआ है की अब जो हो.. वो बस बुरा कम हो!

Tuesday, March 6, 2012

किस को क्या फर्क पड़ता हैं!





फकीरों की फकीरी कौन चुरा सकता हैं,
देखे.. कोशिश करने वालो की नीयत पर क्या फर्क पड़ता हैं!

मेरे शब्दों पे कोई मुंह फेर के चला गया,
कोई "वाह" कह गया तो क्या फर्क पड़ता हैं!

कोई उड़ के आया, घर में चांदनी के रस्ते,
कोई आया फटे पाँव, तो क्या फर्क पड़ता हैं!

किसी ने नूर कहा, किसी ने सनम कहा,
किसी ने "दागी" कहा, चाँद को क्या फर्क पड़ता हैं!

कभी यादो तो कभी साँसों के सहारे चली ज़िन्दगी,
जो ठिठकी भी कहीं जाकर... ज़िन्दगी को क्या फर्क पड़ता हैं!

कईयों को देखा, कईयों को मायूस किया,
देखे.. आने वाला तूफ़ान, किस कदर हौसला रखता हैं!

Thursday, February 23, 2012

ना मिले जो मौके



कितना भी हम मुस्कुराने की कोशिश कर ले,
हंसने का कभी हमे मौक़ा नहीं मिलता!

कुछ नियम है कुदरत के, ऐसे अनोखे भी,
झूमते पेड़ो को कभी नाचने का, मौका नहीं मिलता!

मसीहा भी उन्हें मिलता है, जिनके "कुछ" कर्म अच्छे हो,
जंगल के अंधेरो में, कभी कोई कमल नहीं खिलता!

कुछ आंधियो से पलटे तो कुछ आंसूओं से भीगे,
किताब का हर पन्ना पढ़ा जाए, सबका मांझी ऐसा नहीं होता!

हो के भी ना हो पायी, बशर मेरी महफ़िलो में,
आईने के उस और भी.. मुझे कोई मुझ सा नहीं दिखता!

इश्क की क्या कहूँ, हर पल एक जलन सी रहती हैं,
रह के भी सबसे तनहा, ये जीवन कभी तनहा नहीं रहता!

Monday, February 6, 2012

मेरे फलसफ़ो का फलसफ़ा



मिले गर कोई रास्ता, तो वो रास्ता बता देना,
ना लगे कुछ मुनासिब, तो मेरा फलसफ़ा सुना देना!

इख्तिलाफात कहाँ से मिटते ख्यालो के मेरे,
मेरी ये मसरूफियत, ज़रा वक़्त को.. तुम बता देना!

आब-ओ-दाना की तलाश में, कभी इधर गिरा.. कभी उधर,
कभी संभले, तो इस भागते शहर को भी बता देना!

लाजिमी हैं मेरा हर एक मोड़ पर इंतज़ार करना,
कोई जा के मेरे कातिल को मेरा पता बता देना!

मेरा दुःख ही मेरी पहचान है अब,
मिले जो कभी 'वो", उनका एहसान है ये.. बता देना!

मैंने अपनी अताओ में उनका भी ज़िक्र किया था,
मिले जो मेरे बिछड़े दोस्त, उन्हें मेरी कलमे सुना देना!

मेरे ही नसीब को इतना स्याह लिखना था,
मिले जो खुदा .. तो उसे भी मेरा सवाल बता देना!

न मैं आबिद, ना ही काफिर हूँ मेरे मौला,
एक अदना इंसान हूँ, इंसानियत को ये बता देना!

Tuesday, January 24, 2012

मेरा पैमाना .. और मैं!



अभी तो थोड़ी ही पी हैं ताकि दूर हो सकूँ,
अरे.. आप भी यही हो, चलो मैं कही और चलूं!

अभी तो नज़र भी नहीं झुकी, अभी तो कदम भी साथ हैं,
हो सके तो तब आना.. जब मैं खुद को ना संभाल सकू!

महफ़िल में और भी तो हैं, उनसे भी उनका सबब पूछो,
मुझे दिन की परवाह नहीं.. पीता हूँ, ताकि रात गुज़ार सकूँ!

मेरा खुदा मस्जिद में नहीं, मेरे प्याले में रहता हैं,
मैं पीता हूँ, ताकि साफ़ दीदार-ए-यार कर सकूँ!

बस थोड़ी और मोहलत दो.. थोडा और नसीब चमका लूं,
क्या पता कयामत हो और मैं उसका दीदार पा सकूँ!

गिनती ना पूछो मुझ से तुम मेरे जामो की,
बस एक जाम और.. ताकि उनके कुछ और नजदीक जा सकूँ!

वक्त का क्या कहना, बस दो सुईया घूमती हैं,
पल पल का हिसाब कौन रखे.. मैं क्यों इनके साथ चलूं?

कोई कहता है कम पी .. ये किसी की नहीं होती,
इसने जब किसी का साथ नहीं दिया... तो मैं क्यों इसका ख्याल रखू?

Monday, January 16, 2012

एक कहानी......!!






लम्हे बूँदों से टपकते,
ज़मीन पर जाकर एक-दुसरे से जुड़ते,
कुछ मेरे आंसू.. कुछ तेरे आंसू,
जुड़ के .. मिल के .. एक ज़िन्दगी बनाते!

लफ्जों में कैद होते अलफ़ाज़,
कभी कभी चेहरे पे तैरते कुछ एहसास,
कभी होंठो से .. तो कभी आँखों में छलकते,
आ के सामने.. एक नयी कहानी बनाते!

कभी पसीने में बहता लहू,
कभी रंग बदल के .. बहता बन के आंसू,
एक ही वजूद के अनेक रंग समेटे,
मिल के ये कतरे, एक जिंदगानी बनाते!

कभी तुम बिछड़े, कभी खो गए हम,
कुछ तेरी खुशिया... कुछ मेरे गम,
वो तेरे साथ बिताये, पलो को समेटे,
वो किस्से , मेरे अफ़साने बनाते!

Tuesday, January 10, 2012

मशविरा- ए -ज़िन्दगी



ज़िन्दगी को बस एक नाव की तरह जीना,
आ जाए कितना भी बड़ा तूफ़ान, तुम हिम्मत कभी ना खोना,
पार कर के हर मुश्किल, मंजिल मिलेगी तुम को,
बस.. तब तलक तुम अपनी उम्मीद मत तोडना!

हर एक किरण, एक सूरज छुपाये होती हैं,
रात भी अँधेरे में, बस शोले दबाये रहती हैं,
वो तेरी सोच है, ना की लकीरें तेरे हाथो की,
जो तुझ से .. तेरा मुस्तकबिल छिपाए रखती हैं!

घबरा के हालात से, खींचना हाथ... नहीं काम वीर का,
ताकत ही नहीं, धैर्य भी हैं... आभूषण वीर का,
देखना समय की चाल और रहना सजग सदा ही
बस यही तो है.. रास्ता तेरे भाग्य के शिखर का!

हाथ मजदूर का सा रख .. तो तकदीर तख़्त सी मिलेगी,
मंजिल तो क्या.. तुझे खुशियाँ.. दो जहां की मिलेगी,
पाना-खोना बस नियम है .. जैसे दो साज़ जीवन के,
इन ही के संयोग से तुझे "उसकी" सारी नेमते मिलेंगी!