Sunday, April 17, 2011

बस एक ... तू!




इश्क के नाम से डर लगता था,
अब तो बिन इसके .... जीना ही एक बिमारी हैं!

पल पल का साथ कर अता ए मौला,
मेरे लिए तो ..यही .. दुनिया सारी हैं!

देख के उनको जो मिलता है सुकून,
एक इसी के लिए तो ....ये दुनिया मारी हैं!

कहीं रुका.. तो लगा ये ख्याल था वाजिब,
तुझी पे तो उसने ये दुनिया वारी हैं!

चिरागों से अब मुझे क्या लेना..
तेरा संग ही... अब रौशनी हमारी हैं!

नाम तेरा ले के जो मुझ पे हंसते हैं,
वो नहीं.. उनकी जुबान हमे प्यारी हैं!

तुझे बनाया उसने.. इसीलिए हम सजदा करते हैं,
वरना अपनी नहीं "उस" से कोई यारी हैं!

Saturday, April 9, 2011

उम्मीद और इंक़लाब



ना कहीं धुँआ हैं, ना राख उड़ रही हैं,
फिर भी ना जाने क्यों, लगता है...कही.. कोई चिंगारी जल रही हैं!

हर तरफ आवाम है ..... एक नया आयाम हैं,
फिर भी एक अजीब सी .... खामोशी दिख रही हैं!

आना अकेले .. जाना अकेले .... गुमान ये सबको ही हैं..
फिर भी बुत-परस्तिश की ... इंतिहा हो रही हैं!

किसी उधडे कपडे की तरह, मेरा कुछ अंश छूटता जा रहा हैं,
फिर भी दिल में, वापसी की ... उम्मीद .. जी रही हैं!

सुकून मिलता है .. शोर-ओ-गुल के बने रहने से...
बताओ आज कहाँ .. इंक़लाब की आवाज़ उठ रही हैं!

चिताए ही चिताए है नज़र मे ...... इस कोने से उस कोने तक,
एक मसीहा की उम्मीद में.... अब ये नज़र ... आग ढूँढ रही है!

Saturday, April 2, 2011

तेरी गलियों ... के सवाल





कौन है मेरा कातिल, उसे ढूँढ रहा हूँ मैं...
ले के कुछ सवाल, तेरी गलियों से आज बिछड़ रहा हूँ मैं!

माझी ये मेरा... मुझे और क्या देगा..
निशानी-ए-मोहसिन... दिल-ए-बेजान में लिए जा रहा हूँ मैं!

अलफ़ाज़ भी हैं,... और अरमान भी इस दिल में,
दबा के सीने में उनको, मुस्कुराए जा रहा हूँ मैं!

खैर-गाह हो तेरा अल्लाह, रहे सलामत हर पल तू,
नेकियाँ मेरी तेरे नाम हो, ये कलमा पडे जा रहा हूँ मैं!

कभी तू मुझे रूह सी, कभी साए सी लगती हैं,
इसीलिए छोड़ के सब अंधेरे, उजालो से दोस्ती निभा रहा हूँ मैं!

कहना तो मुझे भी होगा, अलविदा एक मुकाम पर,
बस उस-से पहले..खुद को, तुझ सा बनाए जा रहा हूँ मैं!

इश्क हैं मेरा कातिल, तुझे तो खबर भी नहीं,
तेरी ख़ुशी के लिए, हंसता हुआ रुखसत लिए जा रहा हूँ मैं!