जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Friday, February 25, 2011
अलफ़ाज़-ए-एहसास
आज मैं फिर आपसे कह रहा हूँ!
हर अलफ़ाज़ मे अपने एहसासों को पिरो रहा हूँ!
मेरी हर बात को दिल से सुनियेगा , दिल से महसूस कीजिएगा ,
मैं आपसे आज इस दिल की बात , उसी की जुबानी कह रहा हूँ!!!
जब से है देखा आपको , मैं कुदरत का दीवाना हो गया ,
छोड़ के हर खुबसूरत चीज़ , मैं आपका कायल हो गया ,
वो लोग जो समझते है ख़ाक मेरी दीवानगी को ,
उन्हें क्या पता , मैं आकाश से भी उपर जा रहा हूँ…
आज मैं फिर आपसे कह रहा हूँ!.....हर अलफ़ाज़ मे अपने एहसासों को पिरो रहा हूँ!
मेरा अक्स भी अब मुझसे खफा होता जा रहा है ,
तेरी तरफ मेरे लगाव को अपना दुश्मन मान रहा है
मैं भी इस तकलीफ को समझता हू ,
मैं अब खुद को , खुद से दूर , और तेरे पास पा रहा हूँ…
आज मैं फिर आपसे कह रहा हूँ!.....हर अलफ़ाज़ मे अपने एहसासों को पिरो रहा हूँ!
फिर भी मैं , तुझसे ये अलफ़ाज़ कहने से डरता हूँ!,
तू मुझसे बिछड़ ना जाए , इसी डर से चुप रहता हूँ!
पर अब ये लगता है , सब सच-सच आपसे कह देंगे ,
जो है बीच के सब फासले , उन्हें शब्दों से मिटा देंगे ..
इसीलिए .
इसीलिए ..
मेरी हर बात को दिल से सुनियेगा , दिल से महसूस कीजिएगा ,
मैं आपसे आज इस दिल की बात , उसी की जुबानी कह रहा हूँ!!!
आज मैं फिर आपसे कह रहा हूँ!.....हर अलफ़ाज़ मे अपने एहसासों को पिरो रहा हूँ!
Friday, February 18, 2011
मय और सनम!
अभी तो थोड़ी ही पी हैं, ताकि खुद से दूर हो सकूँ!
अरे आप भी यही हो... चलो.... मैं कहीं और चलूँ!
अभी तो नज़र भी नहीं झुकी, अभी तो कदम भी साथ हैं,
हो सके तो तब आना, जब मैं खुद को ना संभाल सकूँ!
बस थोड़ी और मोहलत दो, थोड़ा और नसीब चमका लूँ,
क्या पता क़यामत हो और मैं आपका दीदार पा सकूँ!
मेरा खुदा मस्जिद में नहीं, मेरे प्याले में रहता हैं!
मैं इसीलिए पीता हूँ, ताकि दीदार-ए-यार का उस से एहसान पा सकूँ!
महफ़िल में और भी हैं.. उनसे भी कोई उनके पीने का सबब पूछे.
मुझे दिन की परवाह नहीं, पीता हूँ ताकि रात गुजार सकूँ!
बहुत हो गयी साकी, अब मुझे घर चलना चाहिए..
फिर मिलूंगा, बस जरा उनके खुमार को ज़रा चढने दूं!
Sunday, February 13, 2011
अदायगी-ए-इश्क-ए-महसूल
महसूल है एक हम पर, जिसे हमको चुकाना हैं,
जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!
गाह-ए-बगाहे नादानी में, हम दिल आपसे लगा बैठे,
गफलत का नहीं... ये मेरे दिल का फ़साना हैं!
...जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!
इजतिराब हैं ये मफर का, बस एक बार सुन लीजिये,
शायद ये लगे तुमको... ये कुछ जाना-पहचाना हैं!
...जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!
कहती है ये दुनिया.... हम दोनों है अलग-अलग,
मुझे अपने आफताब-ए-नसीब को ..... तेरे सितारों से मिलाना है!
...जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!
हैं मेरी भी एक हस्ती, हैं मुझको भी थोड़ा गुमान..
मुझे साथ तेरे चल के, बस थोड़ा सा इतराना है!
...जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!
मुत्फरीक अशरो से मैं क्या हाल-ए-दिल बयान करू...
हमे तो आपको किस्सा-ए-जिंदगानी सुनाना हैं!
...जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!
महसूल है एक हम पर, जिसे हमको चुकाना हैं,
जानता है ये जहां जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!
Subscribe to:
Posts (Atom)