जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Saturday, November 20, 2010
?? क्या गलत .... क्या सही ??
खुमार-ए-गम का गज़ब आलम देखो,
मुझे मेरे ही अक्स से जुदा देखो!
बहती हवा कानो में एक लम्हा कह रही हैं,
लम्हे में कैद, एक पुरानी कहानी देखो!
लबो से बरसती शफा का असर, मैं कैसे देखू,
ए मसीहा कभी अपने होठो पे, मेरा नाम भी तो देखो!
ख्वाबो में शामिल, हर एक आरज़ू मचल रही हैं,
मचलती आरजूओ में लिपटी रवानियो को देखो!
ये शामें, ये राहें.. मुझे कुछ सुना रहे हैं,
सीने में कैद, इनके अच्छे-बुरे साजो को देखो!
ये समा, ये क़ज़ा.. आँखों में बंद सवालों जैसे,
इन उलझे सवालों के जवाबो को तो देखो!
एक नायाब अंदाज़, हर मोड़ पे दिखाती ज़िन्दगी,
हर एक की मुन्तजिर-ए-मौत.. जिंदगानी देखो!
मौत की तरफ चलती हर दम ... जिंदगानी को क्या देखू,
रास्ते में जलते, चिरागों की गिनती देखो!
Wednesday, November 10, 2010
वो...सफ़ेद फूल
तेरी बोलती आँखें और उनकी वो अनसुलझी पहेलियाँ,
मैं आज भी तेरी मासूमियत को याद करता हूँ!
मेरी भूलो से बढकर क्या गुनाह हुआ होगा,किसी से,
मैं आज भी खुद को तेरे सवाबो से घिरा पाता हूँ!
वक़्त का पहिया, लगता है बहुत दूर निकल आया हैं,
पर मैं खुद को अपने ही मांझी के साथ बंधा पाता हूँ!
तेरी यादों का पौधा, आज वट वृक्ष जान पड़ता हैं,
उसकी लताओं में खुद को अब मैं उलझा हुआ पाता हूँ!
जब कभी भी तुझे भुलाने की कोशिश करना चाहता हूँ,
मैं हमेशा उन सफ़ेद फूलो को सामने पाता हूँ!
महफ़िलो, मुलाकातों में काफी बढ गयी हैं मसरूफियत मेरी,
तन्हाईयो में पर, सिर्फ तुझे ही क्यों पास पाता हूँ?
.........मैं आज भी तेरी मासूमियत को याद करता हूँ!
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