Friday, December 25, 2009

तेरी याद में


अब अपनी लरसती आँखों से खुद के अधूरे ख्वाब देखता हूँ मैं,
जो छूट गयी पीछे खुशिया, उनके पीछे छूटते सायो को देखता हूँ मैं.....

अपनी धड़कन तेरे कानो तक पहुचाने के लिए,
कभी कभी सांस लेना छोड़कर, तेरा नाम लेता हूँ मैं.....

उस रात की यादो में ढूँढ़ता
हूँ मैं तुझे.
अब, हर समय....सिर्फ तुझे..... बस तुझे ही याद करता हूँ मैं......

कहने को तो सांस लेता, हंसता दिखता ..
हूँ मैं अब,
पर अन्दर से तेरे बिछडने का, एक गहरा ज़ख्म छुपायें बैठा हूँ मैं.....

जब लेते है लोग तेरा नाम, मेरे नाम के साथ,
तुझे रुसवाई से बचाने के लिए, अपनी ख़ुशी छुपा लेता हूँ मैं.......

अब अपनी लरसती आँखों से खुद के अधूरे ख्वाब देखता हूँ मैं,
जो छूट गयी पीछे खुशिया, उनके पीछे छूटते सायो को देखता हूँ मैं.....

Tuesday, December 15, 2009

तन्हाई का मज़ा



कौन कहता है तन्हाई सजा होती है..
आशिकों से पूछो, ये एक अलग मजा देती है
पूछे कोई उस मोम से उसके जलने का कारण,
क्यों धागे के साथ जलकर, वो सबको रौशनी देती है!!

जब दिल टूटता है, एक पल को दुनिया वीरान लगती है
हर शोर में उनकी आवाज़ और हर जगह उनकी आँखें दिखती है..
यही बातें तो आपको हमारी दुनिया में वापस ले आती है
ना हो कर भी सामने, आप हमेशा निगाहबान बनी रहती है.

पैमाना नहीं है हाथ में, फिर भी हम मदहोश इस कदर है
दुनिया है घूम रही, पर हम उस-से बेखबर है..
हम तो हर ख़ास-ओ-आम में बस उनका ही चेहरा देखते है
जो नहीं है उन जैसा, दिखाओ....... ऐसा कोई शख्स किधर है???

आप पहले थे मेरे सनम, अब खुदा हो गए,
मेरे लिए तो आप रूहानी हो गए!!
आपका जाना एक मज़बूरी था और आना आपकी इच्छा,
पर इस बीच में, आप मेरे लिए मेरी इबादत हो गए.

Sunday, December 6, 2009

डर सा लगता हैं...




छू लेने दो मुझको बोतल, दो चूमने मुझे पैमाना,
मुझे अब हुस्न वालो की निगाहों से डर लगता हैं!

इश्क की ना छेडो, हमे उसके नाम सा भी डर लगता हैं,
कही पैमाना ना मेरा छलक जाए, अब इस बात से डर लगता हैं!

इश्क-ए-दरिया में थे कूदे, और चूर चूर हो कर लौटे,
मुझे अब इसकी, हर आती लहर से डर लगता हैं!

जानने पहचानने में उनको, एक लंबा दौर गुजर चुका हैं,
अब हर नए चेहरे से मुझे डर लगता हैं!

दिल का आइना, आज भी उनकी तस्वीर कैद किये बैठा हैं,
इंतज़ार की इंतिहा ना हो जाए, इस बात से डर लगता हैं!

कवि हूँ मैं, नज़रो की बजाय कलम से आंसू बहाता हूँ,
कही ये कलम ही ना डूब जाए, इस बात से डर लगता हैं

Monday, November 23, 2009

याद करते हैं आपको.....अब भी.... ज़रा ज़रा!


तो क्या अगर ये दुनिया कहती है हमे मरा..
हम अब भी उनकी याद में हंसते है जरा-जरा!!

बात करने से ज़िक्र, तो आयेगा ही आपका,
इसीलिए हम बात भी करते है अब जरा-जरा!!!

मेरी चाहत और मेरा जीना..... नहीं दोनों अलग है..
दिल ने धड़कन को इसका... इल्म है कब का दिया करा....

यादो ने तेरी वाजिब और वादों ने बनाया काबिल..
पहले लटकाते थे, अब उठाते है हम हौसला जरा-जरा!!

यादें तेरी..ही तो है मेरा खज़ाना सबसे बड़ा...
रोज़ तुझे सोच के, इसके सोने को करता हूँ मैं खरा !!

Saturday, November 14, 2009

मैं अब भी उम्मीद रखता हूँ


हर रात अपने सिरहाने पे, मैं एक उम्मीद रखता हूँ,
हर रात अपने ज़ेहन में, तेरी एक तस्वीर रखता हूँ..
हो वो रात, आम रातो से लम्बी, जब तू ख्वाब में निगाहबां हो,
मैं दिन भर, बस ऐसी रात का, आँखों में इंतज़ार रखता हूँ!

पहले आप हमेशा हमे उजालो में मिला करते थे,
हंसते..खिल-खिलाते, हमारी नूर-ए-नज़र बने रहते थे...
हो गए जब से ओझल, आप इन नजरो से,
मैं हर पल, दिल में आपका इंतज़ार लिए फिरता हूँ!
और
हर रात अपने सिरहाने पे, मैं एक उम्मीद रखता हूँ,

अब मुझे मय्कदो के हर जाम, हर प्याले में, आप दिखती हैं,
हर बसे हुए आशियानों में, आपकी तासीर दिखाती हैं..
लोगो ने तो मेरा नाम भी रख डाला हैं "दीवाना"
ये दीवानगी दिल में लिए.. मैं बस दर-ब-दर भटकता हूँ!
इसीलिए
हर रात अपने सिरहाने पे, मैं एक उम्मीद रखता हूँ,

सुनने को आपकी आवाज़ मैं हर मुमकिन कोशिश करता हूँ,
पर ना हो आपको भी इसका इलम, ये पुरजोर कोशिश करता हूँ..
मुझे मेरी ही बे-वफाई का डर.... हमेशा सताता हैं,
मैं तेरी ख़ुशी के लिए, तुझसे दूर रहा करता हूँ!
पर
हर रात अपने सिरहाने पे, मैं एक उम्मीद रखता हूँ!

Sunday, November 1, 2009

मैं तुझे पाऊ कैसे??



मैं एक हाँ कहू कैसे?
मैं एक ना कहू कैसे?
मैं खड़ा हूँ एक ऐसे मोड़ पे,
मैं पीछे हटू कैसे, मैं आगे बदू कैसे??

मैं खुशियाँ सदा तेरी चाहता हूँ,
मैं गम से सिर्फ अपना रिश्ता माँगता हूँ,
सोचता रहता हूँ, बस यहीं हर पल.....
मैं तुझे भूलू कैसे, मैं तुझे पाऊ कैसे??

मैं तिजारत मे कमी नहीं, एक एहसास चाहता हूँ,
मैं तेरा साथ नहीं, तेरे साथ होने का एहसास चाहता हूँ..
अब मांगू भी तो क्या मांगू उस रब से॥
मैं अपनी आँखों में तेरी खुशियों के आंसू पाऊ कैसे??

मैं चाहता हूँ सब कुछ मुझे मिल जाए,
ना कल का इंतज़ार मुझे, सब आज अभी मिल जाए...
होता इश्क का फल, सब्र से भी मीठा...(ऐसा लोग कहते है....)
इस सब्र को, मैं खुद पे आज़माऊ कैसे??

तेरी याद....



आज फिर मेरी बंद आँखों में तेरा चेहरा आ गया..
भूल गया था जिस अतीत को, वो फिर सामने आ गया!
पल भर के लिए तो चैन पड़ा इस दिल को,
फिर वो लम्हा, सब खुशियों को ले के चला गया!!

दोस्त, आज भी तुझे मेरे नाम से जोड़ते हैं,
हम उनके साथ हँसते, पर तन्हाई में रोते हैं,
हर दिन, हर पल, हर समय ही याद तेरी आती हैं,
हम अतीत की गहराई में, खुद को तनहा पाते हैं!

रोज़, लोगो की भीड़ में, मैं तेरा चेहरा तलाशता हूँ,
हर एक आवाज़ में, अपना नाम तेरे सुरों में ढूँढ़ता हूँ,
लोग कहते हैं दीवाना, हमे हर एक शमा का,
मैं वो परवाना हूँ...जो शमा में नहीं....शमा की याद में जलता हूँ!!

Saturday, October 31, 2009

आपको अपने एहसास दिखाऊ कैसे????


अब तू ही बता मैं होश में आऊ कैसे?
लगे है जो भीतरी घाव, उन्हे सुखाऊ कैसे?

मस्जिद जाके सारे कर्जो की मांगी माफ़ी..
पर दिल जो दुखाया किसी का, उसे मनाऊ कैसे??

रात को लेटा, अपने सारे गम गिन के,
तेरे गम की सोच के, अब सोऊ कैसे??

ठोकर खा कर गिरे जो, वो धीरे-धीरे संभालते है..
तेरे इश्क में डूबे ज़मीर को,मैं उठाऊ कैसे

लोग तो कहते है, अब मैं सयाना हो गया...
पर जो बात उस लड़कपन में थी, उसे भुलाऊ कैसे???

Tuesday, October 27, 2009

मेरी चाहत



आज वो हमसे फिर एक बार खफा हैं,
लगे हैं सोचने की शायद हम बेवफा हैं,
हैं सोचा उन्होंने, जो हम ने भी ना सोचा,
क्योंकि, हमारे लिए तो बस... वो ही बस खुदा हैं!!

नहीं जानते वो की क्या कसक-ए-मोहब्बत होती हैं,
सही भी ना जाए, वो उल्फत क्या होती हैं,
जो ना जान पाओ.. तो वापिस चले आना,
हम ही बतायेंगे की क्या-क्या.... नसीहत-ए-इश्क होती हैं!!

मरमरी तेरी आँखों में बसने की चाह हैं.
मुझ आशिक को एक बार, तुझ पे मर मिटने की चाह हैं,
हैं तुझ में और मुझ में, 1 मुजरिम सा ये पर्दा....
अब सारे पर्दों को पार कर, हमसाया बनने की चाह हैं!!

Sunday, October 25, 2009

उसकी अदाए


थी आज गूंजी, एक हंसी मेरे कानो में,
थी एक हसीं अदा, उस नाजनीन की बातो में,
था मैं उसकी हर एक अदा का ऐसा दीवाना,
खुद के गिरने के दर्द से ज्यादा मज़ा पाता था...उसके हंस जाने में।

ना कोई कमी थी, कभी उसकी हंसी में,
था ये सबूत...कि रहती थी वो सदा ख़ुशी में,
थी उसकी बातें, उसकी हंसी, उसकी आँखें..... सदा ही चहकती,
थी उसने बिखेरी, सदा खुशिया ही हर दिशा में।

हैं देखे हज़ारो, ना देखी कोई उस सी,
वो चलती हैं ऐसे, चली जा रही हो दामिनी,
है नशा उसकी बातों में, हज़ारो मयकदो का,
है मासूमियत उसकी ऐसी, जैसे किसी नवजात शिशु की।

जब हैं वो कुछ कहती, मैं उसके लबो को हूँ तकता,
हैं वो एक कमल से, करता हूँ, मैं उनका सदका.
हैं इक-इक अदा उनकी...इतनी हसीं और प्यारी,
डर लगता हैं रब ही ना चुरा ले हमसे ये खुशियाँ हमारी.

Saturday, October 24, 2009

वो हसींन खता.......


जिसकी सजा हमे पता थी, वो गलती हम कर बैठे.....
जानते थे क्या होगा आगे, फिर भी खता. कर बैठे,
दिमाग की सोच और दिल की धड़कन दोनों ही बंद हो गयी॥
हम उनकी आँखों से जब से 2 जाम है लगा बैठे.

Saturday, October 10, 2009

वादा





ये वादा था मेरा मेरे एहसासों से,
कि उनके दिल में पैदा होने के बाद,
पर ज़ेहन में ख्यालों की भीड़ में खोने से पहले,
मैं, उनकी इस जहान से पहचान करा दूंगा!

उन्हें शब्दों में पिरो के, अपनी कविताएं बनाकर!