जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Thursday, December 16, 2010
नया एहसास
फूलों की खुशबु का एहसास ना होता,
ना होते गर साथ तो, ये जहां मुकम्मल ना होता!
तन्हाई में भी अकेला ना होना, अजीब सा लगता हैं,
जो आप न होते, तो ये एहसान नसीब ना होता!
इश्क को बुरा कहने वाले तो बहुत मिले .... बेशुमार मिले,
अच्छाई करने का मौका, हमको भी न मिला होता!
आँखों में रतजगे और दिल में उफान लिए फिरते हैं,
अश्को में इश्क का, ये मुजरिम ना मिला होता!
जीने की ललक .... और मर मिटने की आरज़ू,
बिन पीये, यूं ही बहक जाना... ये जलवा ना मैं जान पाता!
कुछ ने इश्क को खेल कहा, किसी ने सौदा या जुआ..
तेरे बिन मैं अपने इस तरन्नुम को कैसे जान पाता!
दरिया से गहरा,आसमान से उंचा... देखने की तमन्ना थी,
ना मिलते आप, तो ये अरमान... अरमान ही रह जाता!
आते आते मैं इस मुकाम पर भी आ ही गया!
तेरी महफ़िल ना होती, तो जाने मैं कहाँ जाता!
Monday, December 13, 2010
उस मुलाक़ात.... की चाहत!
मैं बस उन मदहोश आँखों में खोना चाहता था,
उन खामोश निगाहों से बातें करना चाहता था!
बोल तो बहुत थे मेरे पास, कहने को.. सुनने को!
पर .... मैं सिर्फ एक एहसास बताना चाहता था!
दिल में गुबार और होठो पे खामोशी रखी मैने,
मैं अपनी आरजूओ का ज्वालामुखी जलाना चाहता था!
तेरी हंसी का तो मैं हमेशा से ही कायल रहा,
मैं बस उसे अपना मुकद्दर बनाना चाहता था!
तेरी मसरूफियत ने ही तो मुझे मजबूर कर दिया,
वरना मैं तुझे अपनी मसरूफियत बनाना चाहता था!
पलकों के आंसू तो कब के सूख चुके थे,
मैं अब.... बस दिल का चैन पाना चाहता था!
Thursday, December 9, 2010
LOVE- कल vs आज
हम इज़हार-ए-दिल के लिए एक इश्किया चाहते हैं!
वो चंद कागज़ के टुकडो पर हाल-ए-दिल बयान करते हैं,
हम हाल-ए-दिल... टुकडा-ए-दिल से ही बयान करते हैं!
चंद शायरों की पुरानो नगमो से वो इश्क पाना चाहते हैं,
हम नगमा-ए-इश्क की हर रोज़ एक नयी ग़ज़ल गाते हैं!
वो तोहफों में शीशे के दिल, खिलोने बना के पेश करते हैं,
हम शीशा-ए-दिल में उनकी तस्वीर कैद किये फिरते हैं!
वो घूमने जाते हैं, और सफ़र में निगाहे राहो में रखते हैं,
हम निगाह-ए-सनम होकर सफ़र-ए-ज़िन्दगी पूरा करते हैं!
वो ज़िन्दगी भर इश्क करने की कसमे खाते हैं, एलान करते हैं,
वो रुसवा ना हो जाए, इसीलिए हम तन्हाईयो में भी उन्हे "वो" कह के बुलाते हैं!
उनका इश्क हमे कुछ कुछ इश्क जैसा लगता हैं,
हम तो सदका-ए-सनम में इसे बस "ज़िन्दगी" कह देते हैं!
Saturday, November 20, 2010
?? क्या गलत .... क्या सही ??
खुमार-ए-गम का गज़ब आलम देखो,
मुझे मेरे ही अक्स से जुदा देखो!
बहती हवा कानो में एक लम्हा कह रही हैं,
लम्हे में कैद, एक पुरानी कहानी देखो!
लबो से बरसती शफा का असर, मैं कैसे देखू,
ए मसीहा कभी अपने होठो पे, मेरा नाम भी तो देखो!
ख्वाबो में शामिल, हर एक आरज़ू मचल रही हैं,
मचलती आरजूओ में लिपटी रवानियो को देखो!
ये शामें, ये राहें.. मुझे कुछ सुना रहे हैं,
सीने में कैद, इनके अच्छे-बुरे साजो को देखो!
ये समा, ये क़ज़ा.. आँखों में बंद सवालों जैसे,
इन उलझे सवालों के जवाबो को तो देखो!
एक नायाब अंदाज़, हर मोड़ पे दिखाती ज़िन्दगी,
हर एक की मुन्तजिर-ए-मौत.. जिंदगानी देखो!
मौत की तरफ चलती हर दम ... जिंदगानी को क्या देखू,
रास्ते में जलते, चिरागों की गिनती देखो!
Wednesday, November 10, 2010
वो...सफ़ेद फूल
तेरी बोलती आँखें और उनकी वो अनसुलझी पहेलियाँ,
मैं आज भी तेरी मासूमियत को याद करता हूँ!
मेरी भूलो से बढकर क्या गुनाह हुआ होगा,किसी से,
मैं आज भी खुद को तेरे सवाबो से घिरा पाता हूँ!
वक़्त का पहिया, लगता है बहुत दूर निकल आया हैं,
पर मैं खुद को अपने ही मांझी के साथ बंधा पाता हूँ!
तेरी यादों का पौधा, आज वट वृक्ष जान पड़ता हैं,
उसकी लताओं में खुद को अब मैं उलझा हुआ पाता हूँ!
जब कभी भी तुझे भुलाने की कोशिश करना चाहता हूँ,
मैं हमेशा उन सफ़ेद फूलो को सामने पाता हूँ!
महफ़िलो, मुलाकातों में काफी बढ गयी हैं मसरूफियत मेरी,
तन्हाईयो में पर, सिर्फ तुझे ही क्यों पास पाता हूँ?
.........मैं आज भी तेरी मासूमियत को याद करता हूँ!
Sunday, October 24, 2010
हर तरफ..... तू ही.... सिर्फ तू हैं!
खुली पलक के सुनहरे सपने में तू हैं,
बंद आँखों के उन गिरते आंसूओं में तू हैं,
तू लगती है मुझे ... कुछ कुछ अपनी सी.....
मैं नहीं जिसे बदल सकता, हाथो की उन लकीरों में तू हैं!
वो हथेली से उडी.. वो ढेर सारी मन्नतें,
वो पूजा की थाली में गिरते, हज़ारो के सिक्के,
बस पूरे कर सके.. वो हर ख्वाब तेरे,
मेरी उन सब हसरतो में .... सिर्फ तू हैं!
वो रहना तेरा .. बन के सवाल, मेरे ख्यालो में,
वो आना तेरा .. बन के जवाब, मेरे सवालों में,
सोचता हूँ कभी कि ... तूझे नज़र अंदाज़ कर दूं,
पर देखता हूँ कि मेरे हर अंदाज़ में तू हैं!
मैं पाता हूँ, हर पल.. तुझे करीब अपने,
बिन तेरे, लगते है मुझे सब ख्वाब अधूरे अपने,
अब तो वो उपरवाला भी जुदा नहीं कर सकता मुझको तुझसे..
बन के मेरा साया .... हर घडी... मेरे संग तू हैं!
Sunday, October 10, 2010
ख्याल-ए-यार
अभी अभी मेरे दिल में ये ख्याल आया हैं,
आज फिर तेरी तारीफ़ में कुछ कहने का ख्याल आया हैं !
फासले तो हमेशा थे और हमेशा ही रहेंगे,
आज दिल से मगर दूरियां निकालने का ख्याल आया हैं!
दूर रह के भी आप सदा दर्द-ए-दिल बने रहे,
आज इस दर्द को अपना कर,आपका रकीब बनने का ख्याल आया हैं!
शीशे में छनकती ...आब का ज़माना दीवाना हैं,
इसीलिए .... शीशा-ए-दिल में आपको उतारने का ख्याल आया हैं!
किस्सा,कहानियां, नज़राने... बहुत हो चुके अफसाने,
आज हाल-ए-दिल आपको सुनाने का ख्याल आया हैं!
ए वक़्त, हो सके तो ज़रा सा तू थम जा,
उन पुरानी यादों का दिल में आज तूफ़ान आया हैं!
गिर रहा हूँ मैं राहो में .. और फिर तेरी यादो में,
उठने का नहीं... और गहरा उतरने का ... आज ख्याल आया हैं!
Monday, October 4, 2010
लगता कुछ कम सा हैं.....
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...
दिल में हो के भी तू मेरे पास... मेरे पास... क्यों नहीं हैं..
एक ये आँखें है, जो हमेशा ही तुझे ढूँढ़ती है.......
एक ये दिल है जो तेरी याद में , उन्हे धुंधला कर देता है..
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...
घर से काम और काम से बस घर...इस में मैं बस गया हूँ..
तेरी याद ना आ पाए मुझे इसीलिए, इन ही में मैं उलझ गया हूँ!!
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...
कभी हम थे फ़िदा उन पे, कभी वो थे खफा हम पे..
पर दोनों ही सूरतो में, मैं मुन्तजिर ही रहा हूँ!!
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...
यार के हिजाब की सब तारीफ़ करे, ऐसे मेरा ख्वाब हैं
पर अपनी ख्वाहिशो से ज्यादा उनकी खुशियों की बलाएं माँगता हूँ
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...
है कुछ भी नहीं मेरे पास, पर रब से उनकी खुशिया मांगता हूँ!!
हैं सब कुछ मेरे पास, फिर भी क्यों लगता कुछ कम सा हैं...
Saturday, September 25, 2010
ढलती शामें...और मेरी यादें
आज ज़िन्दगी की एक और शाम ढल गयी....
दे के कुछ हसीं यादें, एक पल कम कर गयी....
कुछ गम, कुछ आंसू, और कुछ हँसी के पल दिए इसने,
दिए कुछ अंधेरे .... कुछ तारे चमका के चली गयी....
चाहता था मैं भी हँसना, और लोगो को हँसाना,
चाहता था रूठ कर मैं, उनसे अपनी बाते मनवाना,
पर कुछ ही पल में, मैं हो गया सबसे बेगाना...
हँसा-हँसा कर ये, मेरी आँखों मैं बिछड़ने के आंसू दे गयी..
आज ज़िन्दगी की .....................................कम कर गयी
हो शामिल हर दम..हर महफ़िल में, आप मेरे साथ
ना हो भी आप मुद-दा, पर करता हूँ आप ही की बात,
जाने किस रंग से.. किस बात से..ये हो गया है जादू........
बना के हमे मोहसिन, वो दूसरो के जानिब हो गयी!!
आज ज़िन्दगी की .....................................कम कर गयी
बिछड़ गए तो क्या, हम सदा यही दुआ करेंगे
रहो तुम सदा जीतते, यही बस तमन्ना करेंगे
ना मुड़ पाओ हमारे लिए, तो हमे रश्क ना होगा.
आपकी यादो का तोहफा जो... ये ज़िन्दगी हमे दे गयी..
आज ज़िन्दगी की .....................................कम कर गयी
Thursday, September 9, 2010
आपकी आँखों में बस...
कल रात, बहुत देर तक हम उन्हें सोचते रहे....
खुली आँखों के उजले सपनो में उन्हें ताकते रहे!
पड़ी सूरज की किरण आँखों पे तो पता चला सुबह हो गयी.......
हम आखिरी किरण के जाने तक, फिर पुरानी यादें ताज़ा करते रहे!
आँखों के बारे में सोचा तो हम नींद ही भूल गए,
छलके जो आब-ए-दीद, उनका भी पता ना चला..
हर लम्हा हर घडी वो देखती रही एक टक मेरी ओर....
उनमें डूबकर हमे इस दुनिया के पहरों का भी पता ना चला!
अश्को से लिखी, हमने उन आँखों की बातें,
ना जानी, ना समझी किसी ने... लिखी कुछ ऐसी बातें
रंग, साज़, खूबसूरती ....... और क्या होंगे इन से बढकर
बस खींच लेती हैं, मुझे खुद में.. आपकी वो दो आँखें!
Monday, September 6, 2010
अब और क्या कहू?
इस क़दर मैने आप से मोहब्बत की हैं,
मैंने दिल ही दिल में, तेरी परस्तिश की हैं!
साहिल से पूछ, क्यों बार बार वो लहरों से मार खाता हैं?
मैने साहिल की तरह, हरदम तेरा साथ देने की कसम ली हैं!
हो अगर पूछना, तो परवाने से उसका गम जान लेना,
मैने भी उसी की तरह, ये जिंदगानी तेरे नाम की हैं!
हो सके तो साँसों और धड़कन को जुदा करने की कोशिश करना,
मैने दिल में तेरी तस्वीर ऐसे छुपा के रखी हैं!
ज़ख़्म और दर्द का जितना पुराना है रिश्ता,इस जहां में,
मैं तेरा कर सकू उतना इंतज़ार, ये मैने गुजारिश की हैं!
हैं बात बहुत सीधी, पर लगती है थोड़ी मुश्किल,
मैने कर के "खुदा" से बगावत, दिल में तेरी रहनुमाई ज़िंदा रखी हैं!
Tuesday, August 24, 2010
तनहा मैं.....और.....ये दुनिया !!
मैं बारिश में भीगता, गीली आँखों के साथ जलता हूँ
लोग हमेशा मुझसे मेरी मुस्कराहट का राज़ पूछते हैं..
घिसी हुयी खड़ी से, उसके कम होने का कारण कोई क्यों पूछे??
सभी काली दीवार पर, अच्छी लिखाई को सराहते हैं..
दर-ब-दर भटकते परवेश का ठिकाना कोई क्यों मालूम करे?
मिल जाए जो वो रहम-दिल, तो दुआ-ए-ज़िन्दगी सभी चाहते हैं...
एक ग़मगीन शायर की तन्हाई.. को रहती है साकी की तलाश,
पर नासमझ.. बेवफा की बेवफाई को एक हसीं अदा मानते हैं!!
Tuesday, August 17, 2010
मेरी दोस्त :-)
हैं वो एक कली सी, एक महकते फूल सी,
लगती हैं इस युग में, भगवान् की कोई भूल सी,
इतनी प्यारी, नेक सीरत और मासूम हैं वो.....
हैं नहीं वो इंसान, वो हैं... फरिश्तो के मूल की!
हर वक़्त, हर बात पर वो अनजान सी दिखती हैं,
पर अनजान बातो पर, वो बात सधी सी कर जाती हैं
हैं, साफ़ दिल, जज़्बात, मन और जुबान उसकी,
फिर भी हर बात में, खुद से शर्मा जाती हैं!
कभी बच्चो सी मासूम बनकर, खुद पर इतराती हैं,
कभी अपने लड़कपन में, अपनी अदाओ पर इठलाती हैं.
वो पर हैं सादगी से भरी...इतनी भोली,
पल पल अपनी ही बातें सोचकर, उन पर ही सब को हसाती हैं!
खुदा लोग उसके जैसे, बस कुछ और बना दे,
फरिश्तो की ज़रूरत नहीं, लोग दोस्तों से ही काम चला ले,
क्या होगा इस दुनिया का, मुझे कोई फिकर नहीं....
मेरे लिए तो बस वो, तेरा साथ ताउम्र लिख दे!
Friday, August 6, 2010
हौसला बुलंद
मिलता अगर ये जहान मुकम्मल, तो इबादत कोई क्यूँ करता
मिलती अगर हर शह अपनी मुट्ठी में, तो कोई मेहनत ही क्यों करता,
चाहने वालो की चाहत हमेशा उनके दिलो में रहती है...
जो ना होती दिल में ही अगर ये चाहत, तो कुछ कर गुजरने की हसरत कोई क्यों करता
तोडे कई पहाड कईयो ने, तो मोडे कई दरिया किसी ने,
थी आरजू उनके दिल में, तो किये ऐसे हजार काम उन्होंने,
था दिल में बस एक ही जजबा ..कि पाना है अपनी हसरतो को,
उसके लिए खुदा तक को भी , मजबूर कर दिया उन्होंने!!
हो पक्का इरादा और दिल में एक भूख जीतने की,
तो छीन लेते है वो रौशनी भी आग की,
नज़र नज़र का फर्क होता है दोस्तों ऐसे लोगो में,
दिखती है जहां खाई किसी को, आशियाने बसा लेती है वहा भी जिंदगी...
Thursday, July 8, 2010
बद-गुमाँ
सोचता था कि ये एक गुमाँ होगा,
उसके चेहरे में कोई आइना होगा!
उसकी बातें तो हमेशा मुझे खीचती थी,
बातो में ही, उसकी कोई नशा होगा!
तन्हाई में भी वो साथ मेरे रहती थी,
पिछले जनम का, ये हमारा रिश्ता होगा!
यादों में आज भी उनकी खुशबु हैं शामिल,
ये तब की होगी, जब मैने उन्हे छुआ होगा!
वो थी जब हंसती मेरी बातों पर,
लगता.. उसके दिल में भी मेरी मुकाम होगा!
आज नहीं हैं वो साथ मेरे...
पर मेरी धड़कन से, उसका भी दिल चलता होगा!
Sunday, July 4, 2010
तेरा इश्क ही मेरी पहचान है...मैं इसे छुपाऊ कैसे???
तेरी खुश्बू को अपनी साँसों से मिटाऊ कैसे,
यादो के साहिल से तेरी तस्वीर की रेत हटाऊ कैसे?
वैसे तो दोस्त अब भी हाल-ए-दिल पूछते है,
उनको मैं अपना दर्द-ए-दिल, ये दिखाऊ कैसे?
कहते है मय भुला देती है, सारे ही गम..
मैं पैमानों में नाचती, तेरी मुस्कान को भुलाऊ कैसे?
लोग कहते है इश्क देता है सिर्फ़ गम, ना कि खुशी किसी को,
मैं इन नादानों को, अपनी अन्दर की कश-म-कश दिखाऊ कैसे?
तेरी आवाज़ को मैं अब भी, अपनी तन्हाई में संग पाता हूँ,
अपनी इस खामोश मुफलिसी को, खुद ही से छुपाऊ कैसे?
Monday, June 28, 2010
बदलाव और चाहत
मुझे आज एक मुकम्मल शाम मिल गयी,
मेरी मसरूफ ज़िन्दगी में कुछ हसीं पल भर गयी,
थी शायद आज ये ज़िन्दगी भी मुझ पे कुछ मेहरबान....
मेरी तन्हाई में ये तेरी मुस्कराहट भर गयी!!
चाहत .... जो आप लाये
जानने में तुझे ये ज़िन्दगी बिताना चाहता हूँ,
बस एक बार, मैं खुद को आजमाना चाहता हूँ,
मुझे नहीं पता, हैं ये तेरी कशिश या दीवानगी मेरी,
मैं बस अपनी पहचान, तेरे नाम से बनाना चाहता हूँ!
Saturday, June 19, 2010
मेरी नादान कोशिश ...!!
हमने सुबकती आँखों को इस कागज़ पर,
उकेरने की नाकाम कोशिश की हैं.
हमने कांपते होठो की मद्धम आवाज़ को,
यहाँ एक गूँज बनाने की कोशिश की हैं....
बिन पीये हमे दीवानगी दिखी..
और हम थोड़ा सा बहक गए,
हमने उस खुमारी को ..बिन घुंघुरू के,
इस चक्कते पे नचाने की कोशिश की हैं!
मुश्ताक-ऐ-दीद थे उन दिनों हम,
नतीजा-ऐ-इश्क से अनजान थे,
हमने उन बेताब पलो की चोटो को
नासूर बनाने की पुरजोर कोशिश की हैं
निजात पा सके इस दौर से,
कभी ऐसा तसव्वुर ना रखा हमने,
हमने हर आते-जाते झोंके में,
उनकी छुअन महसूस करने की,ता-उम्र, कोशिश की हैं!
दिल में छुपे इस इश्क का,
हम कोई परचम नहीं चाहते..
आप चाहे जहां रहे..बस खुश रहे..
हर अता में.. हमने यही गुजारिश की हैं!
Friday, May 21, 2010
अब मैं बस... यही करता हूँ!
मेरे अलफ़ाज़, मेरी हकीक़त...... अब उनके कानो तक नहीं पहुचती,
इसलिए..... मैं दवात-ए-स्याही बर्बाद करता हूँ।
खून-ए-जिगर बन के आंसू.....बह चला आँखों से,
इसीलिए...... " उन " लम्हों को संजोकर, अब मैं हंसा करता हूँ।
इश्क था आप से तब भी.......अब भी........और.... ताउम्र रहेगा,
मैं आपकी यादो को, अपना हमसाया बना कर फिरता हूँ।
कल मर जाउंगा तो जल के भी...राख से आएगी तेरी ही खुशबु,
मैं आज भी, तुझे सीने से लगा कर सोता हूँ।
हो जाऊ मैं कितना भी आगे, मैं कितना भी सफल,
बिन तेरे मैं खुद को............अधूरा ही पाता हूँ।
मैं कमज़र्फ..खड़ा एक तरफ, सहता अकेले ये वक़्त के थपेड़े,
मैं ये तनहा सफ़र, .............अब तेरे साथ तय करना चाहता हूँ!
Thursday, May 6, 2010
ये... सयाने लोग
कुछ कहने और कुछ समझाने आये लोग...
आये हैं उनका रस लेने ...सारे लोग॥
फिर दिलासा देकर, चोट हरी करने वाले लोग
बगले झाँकते, मुंह ताकते..अनजाने लोग॥
आये दबी हुयी आग को धधकाने लोग....
खुद ही दिल को अक्सर तोडने वाले लोग॥
कहता हूँ मैं तो.."रहो मुझसे तुम परे"
नहीं चाहिए मुझे, इतने सयाने लोग...
Saturday, April 3, 2010
आपका तसव्वुर... मेरी दीवानगी
हम-नवां की यादो ने मुझे राही बना दिया॥
हमने ना कटते इस वक़्त को ही, अपना गुनाहगार मान लिया॥
रंग-ए-हिना को हमने अब खून-ए-जोश में है मिला लिया॥
पता चला की जुदाई-ए-सनम, मेरे नसीब में उसने लिख दिया॥
हमने उनके तसव्वुर में, खुदी की हस्ती को भुला दिया॥
हमने हर एक शमा को जलने को हाँ..... पर पिघलने को ना कह दिया...
Wednesday, March 24, 2010
आपको........भूलू कैसे????
Tuesday, March 9, 2010
एक आंसू और थोड़ी तन्हाई
फिर एक आंसू और थोड़ी तन्हाई
ना जाने आज तू फिर क्यों याद आई!
कोशिश तो की तुझे भूल जाने की,
हर कोशिश में तू फिर ज्यादा याद आई!
कहाँ-कहाँ नहीं भटका, मै तेरी यादो से बचने को,
हर छलकते जामो ने फिर तेरी ही गली की राह दिखाई!
कहते रहे लोग .... ज़िन्दगी लम्बी हैं, वक़्त कट जाता है,
जितना तुझे भुला था... उस से ज्यादा तू तब याद आई!
Saturday, February 27, 2010
फितरत-ए-इश्क
मैं बिन बहके, तेरे आगोश में समा जाना चाहता हूँ,
आँखों में तेरी भी प्यार हैं, ये मैं भी जानता हूँ...
मैं अपनी आँखों में समाकर, तुझे जग से छुपाना चाहता हूँ!!
हैं.. दिल ............................................................ जाना चाहता हूँ,
तेरी हर बात, मुझे तेरा रकीब बनाती जा रही हैं,
हर घडी , हर लम्हा तेरे करीब लाती जा रही हैं..
इस कशिश से में कैसे खुद को छुडाऊ,
मैं अब तुझे अपने दिल, जिस्म और रूह में मिला लेना चाहता हूँ!!
हैं.. दिल ............................................................ जाना चाहता हूँ ,
तेरी ख़ुशी, तेरी ही हंसी-- ये अरमान है मेरा,
हो चाहे, इस से कोई नुकसान ही मेरा,
तुझे ना हो कोई गम, ना अफ़सोस इस ज़िन्दगी में,
मैं अपनी खुशियाँ-ए-ज़िन्दगी तेरे नाम कर जाना चाहता हूँ!!
हैं.. दिल ............................................................ जाना चाहता हूँ ,
जिस चीज़ को मैने चाहा, वो शायद अब दूर जा रही हैं.
दिल में हैं पाने की आरज़ू, पर होठो पे नहीं आ रही हैं,
मिल जाए अगर मुझे वो...जो लिखता हैं सबकी तकदीरें,
मैं लड़ के उस से, तुझे अपने नसीब में उतरवाना चाहता हूँ..!!
Monday, February 15, 2010
इंतिहा
मेरे इंतज़ार की अब इंतिहा हो चली हैं..
पर मेरे इश्क का फैसला अभी बाकि हैं!
कहता था मैं "हमसाया", अब उनसे इकरार चाहता हूँ...
पर मेरी मुफलिसी मुझे फिर उनके साथ ले चली हैं!
वो हैं हमारे, अब ये उनको लबो से सुनना चाहता हूँ,
पर ज़बान ये मेरी अब भी उनका ही कलमा पढ रही हैं!
जान जाता अगर उनका रूह-ए-तिलिस्म, ये खता ना मैं कभी करता,
अब इसके बदले में, धड़कन उनका साथ मांगने चली हैं!
हिज्र-इ-सनम से डरता हूँ, इसीलिए तेरी एक "हाँ" की दरकार हैं.....
पर आप की "ना" के खौफ से, मेरी धडकने तेज़ हो रही हैं!
ए बानो, एक एहसान कर... चाहे हाँ कर या ना कर.....
पर जब भी तू कुछ कहे...... ये कहना कि फैसला अभी बाकि हैं!
आशिकों से ना पूछो, क्या मज़ा हैं इंतज़ार में,
इश्क से ज्यादा मस्ती तो हमे इंतज़ार में मिल रही हैं!
मेरे इश्क का फैसला अभी बाकी हैं!
और मेरे इंतज़ार की अब कोई इंतिहा....नहीं हैं!
Sunday, January 10, 2010
चेहरा
हम खुदा से पूछते है, कही ये चाँद तेरा अक्स तो नहीं..
हमको तो हर चेहरा उन सा लगता है..
आग ही जाने, आग ये कितनी कमसिन है..
जलने वाला. अपनी जलन से डरता है...
हम से ना पूछो, दर्द-ए-जिगर क्या होता हैं,
मदहोशी में, नाम तुम्हारा लेता हैं....
दूर गए हो, फिर भी यादो में रह कर....
तेरा चेहरा, मेरा निगहबान बना रहता हैं...
आओगे जब लौट के, तो हम देखेंगे,
दिल ये हमारा, कैसे खुद ही संभालता हैं.....
आँखें तेरी खुद में हे नूर-ए-गुलिस्तान हैं,
देखे कैसे अब खुद को,.... खुदा देखता हैं!!