Wednesday, May 30, 2012

बिन तेरे सनम





मैं जब भी कभी उदास होने लगता हूँ,
मैं आंखें मीच कर , तेरा दीदार कर लेता हूँ !

हवा, पानी, घटा और मिटटी , सावन में सब मिल जाते है,
मैं भी ऐसे ही तुझ से मिलने की ख्वाहिश रखता हूँ !

तेरे नाम के सदके ले लेकर , मैं मंदिर मस्जिद जाता हूँ ,
मैं तेरे अरमानो का दम लेकर .. हर पेड़ से मन्नत बांधता हूँ!

मुश्किल तो एक ही हैं .. कि दीदार-ए-सनम को हम तरस गए ,
तेरी तस्वीर को अब मैं अपना हमसाया .. जो मानता हूँ!

सोचा था कुछ हसीं पलो के लिए .. कुछ आंसू बचा के रख लेंगे,
गिनती तो अब मैं भूल गया .. बस राहो पे निगाह में रखता हूँ!

जानता हूँ , तू मेरा नसीब नहीं है .. फिर भी
मैं अक्सर खुदा से .. तेरे लिए .. तकरार किया करता हूँ!

Thursday, May 17, 2012

ये कैसा नज़ारा





अपने दिल के किसी एहसास में कही गुम सा,
अपने ही गम में डूबा , ये आलम ग़मगीन खामोश सा!

रतजगो में बैचैनी , अंधेरो में सब उदास हैं,
फलक पे भी आजकल , दिखता नहीं कोई ज़र्रा आफताब सा!

बियाबाँ सी महफ़िल , अंधेरो में खोयी,
क्या चलेगा कोई संग मेरे .. कोई मेरे हमसफ़र सा!

आँख खुलती नहीं , लहू इस कदर है देख लिया,
क्या दोनों में से एक का भी दिल नहीं था इंसान सा!

दिल की कही .. अब तक ना सुन सका , ना कर सका,
अपनी ही करनी पे रोता.. मैं कमबख्त बदनसीब सा!

सोचता हूँ क्या किसी की .. अर्ज़ अब सुनेगा वो,
वो (खुदा) भी होगा आजकल .. शायद कुछ मसरूफ सा!