जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Wednesday, May 30, 2012
बिन तेरे सनम
मैं जब भी कभी उदास होने लगता हूँ,
मैं आंखें मीच कर , तेरा दीदार कर लेता हूँ !
हवा, पानी, घटा और मिटटी , सावन में सब मिल जाते है,
मैं भी ऐसे ही तुझ से मिलने की ख्वाहिश रखता हूँ !
तेरे नाम के सदके ले लेकर , मैं मंदिर मस्जिद जाता हूँ ,
मैं तेरे अरमानो का दम लेकर .. हर पेड़ से मन्नत बांधता हूँ!
मुश्किल तो एक ही हैं .. कि दीदार-ए-सनम को हम तरस गए ,
तेरी तस्वीर को अब मैं अपना हमसाया .. जो मानता हूँ!
सोचा था कुछ हसीं पलो के लिए .. कुछ आंसू बचा के रख लेंगे,
गिनती तो अब मैं भूल गया .. बस राहो पे निगाह में रखता हूँ!
जानता हूँ , तू मेरा नसीब नहीं है .. फिर भी
मैं अक्सर खुदा से .. तेरे लिए .. तकरार किया करता हूँ!
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मीच Closed
ReplyDeleteदीदार To see
घटा Cloud
मिटटी Soil
ख्वाहिश Wish
मन्नत Votive
तकरार Fight