Sunday, October 30, 2011

कुछ खोया हुआ सा मैं



हो के तनहा, मायूस... एक कोने बैठा हुआ हूँ मैं,
जाने कब से ऐसे ही.. कही खोया हुआ हूँ मैं!

नज़र से कैसे हटाऊ.. दिल में बसा है जो,
हर एक चेहरे को.. बस तुझ सा ही पाता हूँ मैं!

परवाज़ हैं जिगर में, और हौसला भी इस दिल में,
बस तमन्ना का धागा .. तुझ से जुडा पाता हूँ मैं!

बसर क्या कहीं करू, बेनाम सा ही फिरता हूँ,
हर बार खुद को.. तेरे ही दर पे खडा पाता हूँ मैं!

कुछ नहीं हैं अगर अब भी.. तेरे मेरे दरम्यान,
क्यों खुद को अब भी तुझ से जुडा पाता हूँ मैं!

दिल, अक्स तो दिया, अब ये तन्हाई नहीं दूंगा,
दे के कुछ भी तुझको... कुछ नहीं रख पाता हूँ मैं!

तनहा तो ना था, जब साथ तेरा था,
हो के दूर तुझ से.. खुद से खो गया हूँ मैं!

Sunday, October 23, 2011

नज़र-ए-मोहब्बत

हमने हर रोज़ तुझे.. झरोखों के कोनो से देखा,
तुझे क्या मालूम, हमने तुझमें अपना मुकम्मल जहां देखा!

वो ढलती शामो की ... बांहों में बैठकर... मेरा तुझे निहारना,
हमने खुदा की नक्काशी का, तुझी में, सबसे हसींन रूप देखा!

वो तेरे साथ... हँसना, उठना, बैठना.. रहना,
हमने उस रोज़ खुदा को .... हम से रंज करते देखा!

हर आवाज़ में ... तेरी ही बातें सुनाई देती थी,
हमने सुकून को .. कानो के रास्ते.. दिल में उतरते देखा!

कभी कभी तेरा हमसे खफा रहना... और दूरियां बढा लेना,
हमने उन लम्हों को .. सदियों से भी लंबा होते देखा!

ज़िन्दगी को हमने... ज़िन्दगी.... तेरे आने से ही जाना,
तेरे साथ.. हमने हर एहसास को ... ज़िन्दगी की किताब बनते देखा!

Friday, October 7, 2011

यादों की सेहर

सोचा जो तेरे बारे में, उम्र कुछ बढी सी लगी,
लगा यूँ... जैसे पल भर में एक सदी सी गुज़र गयी!

जज़बातो का समंदर, यादों का बवंड़र..
और उस पर तू यूँ... मुस्कुरा के चली गयी!

आँखों की जुबान.. शायद आंसूओ को ही कहते हैं,
ख़ुशी हो या गम... हर एहसास... बस ये छलक कर कह गयी!

कल यूँ ही तकदीर और वक़्त राहो में टकरा गए,
वक्त तो नाराज़ दिखा... और तकदीर बस... चिढा के निकल गयी!

इकरार-इनकार तेरा... मेरी कशमकश नहीं,
तेरी बन्दिगी... अब.. मेरी ज़िन्दगी बन गयी!

ज़िन्दगी एक लम्बी सड़क... सफ़र बदगुमानी का,
उसमें तेरी याद... कुछ लम्हों की सेहर कर गयी!