Wednesday, August 17, 2011

छूटते घर के .. छूटते रिश्ते





उन पुरानी गलियों ने मुझे ऐसे देखा..
उन्होंने जैसे मुझसे कभी कोई वास्ता हीं नहीं रखा..
वहाँ पडी थी एक टूटी हुई डोरी .. अनकहे.. बेनाम से रिश्तो की,
और दूर तलक मुझे.. खुद के लिए कोई आसरा ना दिखा!

वो कमरे, जो मैने.. सदा हँसते देखे,
आज मुझे उनके सारे कोने दिख रहे थे
वो दीवारें, वो दरारें, वो टूटे हुए पलस्तर..
वो खाली अलमारियो में मेरे टूटे हुए चप्पल ...
मेरे ऊपर हँस और अपनी तन्हाईयो पे रो रहे थे!!

वो सीढीया जो मुझे कभी ऊपर धकेलती थी,
और कभी कभी. .. डराने के लिए नीचे खीचती थी,
उन्हें चढने के डर से कभी मैं .. दुसरो पर चिल्लाया
तो कभी मेहमानों के आने की खबर ले के उन्हें फांदता आया...
आज पहली बार हमने उन सीढीयो की गिनती देखी!!

घर का हर कोना .. आज अजीब.. अनजाना दिखने लगा,
छत से देखा .. हर एक नज़ारा बेनूर लगने लगा,
यही से कभी हमने .. भविष्य देखा था अपना
कोशिशे की थी .. जो नहीं है उसे भी बना लेंगे अपना
पर... आज मुझे .. मेरा अतीत, बहुत ... बहुत पुराना लगा!!

वो नुक्कड़, वो राहें, दुकान पे लोग और उनका शोर,
ये सब कुछ था, अब तक .. मेरा एक अहम् हिस्सा बने हुए,
ना छूटा मेरे दामन से, एक भी वो किस्सा,
जितनी की कोशिश, उतना मज़बूत हुआ ये रस्सा!!
आज, मेरी ये पहली .. ये सारें मेरी यादें .. मुझसे विदा ले रही हैं!!


घर क्या छूटा, लगा रूह छोड़ दी अपनी,
शरीर तो वही था, आज जीते जी आत्मा बदल दी अपनी..
वो जो पुरानी पहचान थी .. हमारे होने की अब तक,
वो जो तकदीर थी, उसके होने की वजह से अब तक
आज लगता है.. खुद अपनी पहचान बदल दी हमने!!

Sunday, August 14, 2011

ये जंग के हालात





वो जो मेरी गोली से मरा हैं..
वो हु-ब-हु..मुझ सा दिखता हैं..
उस के पास भी एक मुल्क और एक दिल था,
दोनों को लगाकर सीने से, वो मुझसे लड़ता था...!!

मैने उसे मारा, वरना वो मुझे मार देता,
वरना उसका कमान्डर उसका कोर्ट-मार्शल करवा देता..
वो भी एक मजबूर सिपाही था, मेरी तरह..
उसी मजबूरी में वो मुझे, शहीद का दर्जा दिलवा देता!!

उसके पर्स में भी..... उसकी बीवी की फोटो होगी..
मरने के बाद भी, ज़ेहन में.... बच्चो की चिंता होगी..
अपने माँ-बाप का वो भी लाडला बेटा ही होगा...
अब उन सब की आँखें, उसके लिए रोती होंगी..!!

जाने कब तक यूँ ही जंग चलती रहेगी..
कब तक मेरी या मेरे हमसाए की लाशें... गिरती रहेंगी.
कब अमन का कबूतर संगीनों पे चढकर बोलेगा.....
कब हमारी माएं..बहने... चूल्हे पर सांझी रोटियाँ सकेंगी...

Friday, August 5, 2011

आफरीन





देख के तुमको, मैं खुदा का मुरीद बन गया,
मंजिल अपनी छोड़, मैं तेरी राहो का हमसफ़र बन गया!

कड़ी से कड़ी मिली, यादों की ज़ंजीर बन गयी,
बिन कहे, मेरा एक फ़साना बन गया!

राह-ए-उल्फत के फ़साने का कोई इरादा नहीं था,
बस आप को देखा तो, जीने का बहाना बन गया!

कभी खुलती... कभी बंद होती.. ये मेरी निगाहें,
नज़रो के समंदर का, तेरा चेहरा किनारा बन गया!

पहले मैं ज़मी-दोज़.. बेसबब सा .. आवारा सा,
तेरे आने से मेरा भी, एक हसींन मुकाम बन गया!

खुदा भी हैरान हैं, तेरी ये शख्सियत देखकर,
उसे तो पता ही नहीं चला.. कैसे ये दूसरा आफताब बन गया!

मोहसिन तो मेरे बहुत हैं, कई हैं मेरे चाहने वाले....
पर बना के तुझको... वो ऊपर वाला ..... मेरा खुदा बन गया!