Sunday, December 18, 2011

वो मुलाक़ात



वो हम दोनों की जो मुलाक़ात थी,
वो .. बड़ी हसींन रात थी!

ना चाँद थे, ना जुगनू थे फलक पे,
पर तेरे साथ .. वो, मेरी चाँदनी रात थी!

ना कुछ तुम बोले, ना वो कभी हमने कही,
अनसुनी सी .. वो, बड़ी प्यारी बात थी!

ना कोई गम, ना कोई बोझ अब था,
तू.. मेरी ख़ुशी.. जो मेरे साथ थी!

बरसो तक था मैं जो रोया,
उसके बदले.. वो रात.. खुदा की सौगात थी!

टिमटिमाते तारों में, मेरा सितारा बुलंद था,
तेरा होना, मेरी बदनसीबी की एक बड़ी मात थी!

वो बड़ी खुबसूरत रात थी!

Saturday, December 10, 2011

मैं, मेरी तन्हाई और ....... तुम!



तुम्हे नज़र में बसाकर हम ... आँखें मूंदे रहते हैं,
बस तेरे तरन्नुम गाकर, तन्हाई को अपना साथी बना लेते हैं!

दीवारों पे लिखी बातें.. कभी कभी हौसला दे जाती हैं,
वरना तेरी आँखों में हम ज़िन्दगी देखा करते हैं!

बुजुर्गो का कहा.. सुना हैं बहुत.. पढा है बहुत,
पर सवाल तेरा आते ही, हम कहाँ... वो माना करते हैं!

भूली-बिसरी यादों से.. तुझे जेहन में ज़िंदा रखा हैं,
लोहे की यादो पे, कहाँ वक्त की जंग असर करती हैं!

मशहूर हुए जीवन.. ऐसे ही दर-ब-दर की ठोकर से,
फिर भी आप ही के नाम से .. हर सुबह का आगाज़ करते हैं!

कहने को गम-ए-ज़िन्दगी.. हर मोड़ पे इम्तिहान लेती हैं,
हम हर एक सवाल का जवाब.. तेरी ख़ुशी से देते हैं!

Monday, December 5, 2011

मेरे कुछ शौक


तेरी खुशियों में शामिल ना होने का गिला नहीं मझे,
तेरे गम की हंसी कम करने का शौक है मुझे!

वो तेरी हया, वो तेरी जफा... हर एक अदा मुझे याद हैं,
मांझी को तेरे, यादों से अपनी.. रंज कराने का शौक है मुझे!

सबका कहा सुना मैने, करता रहा खुदी की मैं,
कहने वालो को जलाना, ऐसा ही कुछ शौक है मुझे!

मिल गया अगर कोई.. ले मोती आगे बढ गया,
आँखों से ये सबकी चुराना, ये भी एक शौक है मुझे!

मौत भी आ जाए.. तो कह दू, तसव्वुर में हूँ तेरे,
उस को भी हर पल तडपाने का. ये अनोखा शौक है मुझे!

तेरा नशा ऐसा है जिस पर, बाकी सब बेकार,
मयखानों में पीते जाने का, बेमतलब सा शौक है मुझे!

अँधेरी राहो के कोनो पे.. हर दम, एक इंतज़ार में रहता हूँ,
आते जाते को दिया दिखाना.. एक मासूम सा शौक है मुझे!

Friday, November 18, 2011

आज फिर.. तेरी याद चली आई!

दिल से आज कोई.. फिर से .. तेरा नाम कह गया,
और फिर से मैं.. आज तेरी यादों पे.. तवज्जो दे गया!

आज फिर उस पुरानी कहानी पर नज़र पड़ गयी मेरी,
फिर एक पुराना लम्हा .. उन फूलो में नया रंग भर गया!

भूले तो नहीं हैं तुझे .. अब तलक हम,
आज वक़्त मुझे .. फिर से.. तेरी एक नयी तस्वीर दे गया!

वो कलियाँ, वो नज़ारे.. आज भी तेरे बारे में पूछते हैं हमसे,
कहते हैं - गुलशन का सबसे हसींन गुल .. कहाँ चला गया?

सोचा कि गुम हो जाउ.. इस जंगल में.. मैं भी कही,
आज ये शोर भी .. मुड़कर यूँ ही... तेरा नाम लेकर चला गया!

तेरे .. दूर जाते रिश्ते का.. मुझे मुड़कर यूँ अलविदा कहना,
जाते जाते, वो मुझे तोहफे में, उम्र भर का इंतज़ार दे गया!

जाने तुझे रकीब कहूं या कहूं दुश्मन अपना,
तू दे के अपना साया.. मेरे दामन पे एक स्याह छोड़ गया!

Saturday, November 5, 2011

तेरे इंतज़ार में .. क्या क्या ना किया मैंने!!

अपनी बर्बादी को हर बार मनाया मैंने,
रोते जज़्बात को हर बार समझाया मैंने!

आंसू तो छलके.. हर बार.. हर कोने से,
नाम तेरा ले ले के... हर बार.. इन्हें सुखाया मैंने!

दुनिया तो तेज़.. बहुत तेज़ निकली,
खुद को.. कल फिर.. वही.. तेरे साथ पाया मैंने!

कुछ कहा.. कुछ सुना.. बस यही मेरा फ़साना हैं,
पर हर बार.. कुछ तेरा सा.. हर तराने में गाया मैंने!

दूरी नजरो की हैं, दिल से तो हम आज भी एक हैं,
कल तेरे साए को.. अपने कमरे के बाहर खडा पाया मैंने!

मेरे इतने सजदो को मेरी कोई तलब ना समझना मौला,
अपनी हर अता में.. उसकी सलामती का कलमा दोहराया मैंने!

Sunday, October 30, 2011

कुछ खोया हुआ सा मैं



हो के तनहा, मायूस... एक कोने बैठा हुआ हूँ मैं,
जाने कब से ऐसे ही.. कही खोया हुआ हूँ मैं!

नज़र से कैसे हटाऊ.. दिल में बसा है जो,
हर एक चेहरे को.. बस तुझ सा ही पाता हूँ मैं!

परवाज़ हैं जिगर में, और हौसला भी इस दिल में,
बस तमन्ना का धागा .. तुझ से जुडा पाता हूँ मैं!

बसर क्या कहीं करू, बेनाम सा ही फिरता हूँ,
हर बार खुद को.. तेरे ही दर पे खडा पाता हूँ मैं!

कुछ नहीं हैं अगर अब भी.. तेरे मेरे दरम्यान,
क्यों खुद को अब भी तुझ से जुडा पाता हूँ मैं!

दिल, अक्स तो दिया, अब ये तन्हाई नहीं दूंगा,
दे के कुछ भी तुझको... कुछ नहीं रख पाता हूँ मैं!

तनहा तो ना था, जब साथ तेरा था,
हो के दूर तुझ से.. खुद से खो गया हूँ मैं!

Sunday, October 23, 2011

नज़र-ए-मोहब्बत

हमने हर रोज़ तुझे.. झरोखों के कोनो से देखा,
तुझे क्या मालूम, हमने तुझमें अपना मुकम्मल जहां देखा!

वो ढलती शामो की ... बांहों में बैठकर... मेरा तुझे निहारना,
हमने खुदा की नक्काशी का, तुझी में, सबसे हसींन रूप देखा!

वो तेरे साथ... हँसना, उठना, बैठना.. रहना,
हमने उस रोज़ खुदा को .... हम से रंज करते देखा!

हर आवाज़ में ... तेरी ही बातें सुनाई देती थी,
हमने सुकून को .. कानो के रास्ते.. दिल में उतरते देखा!

कभी कभी तेरा हमसे खफा रहना... और दूरियां बढा लेना,
हमने उन लम्हों को .. सदियों से भी लंबा होते देखा!

ज़िन्दगी को हमने... ज़िन्दगी.... तेरे आने से ही जाना,
तेरे साथ.. हमने हर एहसास को ... ज़िन्दगी की किताब बनते देखा!

Friday, October 7, 2011

यादों की सेहर

सोचा जो तेरे बारे में, उम्र कुछ बढी सी लगी,
लगा यूँ... जैसे पल भर में एक सदी सी गुज़र गयी!

जज़बातो का समंदर, यादों का बवंड़र..
और उस पर तू यूँ... मुस्कुरा के चली गयी!

आँखों की जुबान.. शायद आंसूओ को ही कहते हैं,
ख़ुशी हो या गम... हर एहसास... बस ये छलक कर कह गयी!

कल यूँ ही तकदीर और वक़्त राहो में टकरा गए,
वक्त तो नाराज़ दिखा... और तकदीर बस... चिढा के निकल गयी!

इकरार-इनकार तेरा... मेरी कशमकश नहीं,
तेरी बन्दिगी... अब.. मेरी ज़िन्दगी बन गयी!

ज़िन्दगी एक लम्बी सड़क... सफ़र बदगुमानी का,
उसमें तेरी याद... कुछ लम्हों की सेहर कर गयी!

Friday, September 30, 2011

मेरी माँ




सदका-ए-जान माँ उतारा करती थी,
हर बात पे काला टीका लगाया करती थी,
जाने किस बात से, वो इतना डरा करती थी,
हर रात... मुझे सुला कर ही.. वो सोया करती थी!

थोड़ा बड़ा हुआ.. तो स्कूल में दाखिला मिला,
नाश्ते से लेकर लंच का... केवल बवाल ही उसे मिला,
गंदे खाने से कही तबियत ना बिगड़ जाए मेरी..
वो लंच लिए हाथो में, गेट के उस पार खड़ी रहा करती थी!

जब थोड़ा और बड़ा.. तो कॉलेज मैं जाने लगा,
मेरा छोडो, मेरे दोस्तों का ख्याल भी उसे सताने लगा..
इक्जाम के उन रात भर के .. मेरे रतजगो के लिए,
वो खुद जागकर... कभी चाय ... तो कभी काफी बनाया करती थी!

थोड़ी बढत और हुई.. मैं एक से दो और फिर तीन भी हो गया,
माँ की उम्र का भी .. अब थोड़ा उन पर असर हो गया,
फिर भी नन्हे "जीवन" के लिए...
माँ ... तेल की शीशी और छोटी सी चड्डी लिए भागा करती हैं!

मेरी माँ, आज भी सदका-ए-जान उतारा करती है!

Sunday, September 4, 2011

तेरी इनायत



अधूरे ख़्वाबों के शहर में, एक वो ख्वाब याद हैं,
चूर हुए आईने में भी .. एक तनहा अक्स... आबाद हैं!

ज़ख़्म तो बस एक ही था, मेरे मन पर,
शायद यही मेरे हर, बिखरे सवाल का जवाब हैं!

आंसू, तन्हाई... और शिकवे.. सब ही हैं मेरे पास,
तेरी हैं ये यादें हैं, ये मेरे तोहफे नायाब हैं!

ख़ुशी तेरी हंसी की, नमक तेरे गमो का,
वो तेरा सुरूर है.. जो बनाता मुझे लाजवाब हैं!

ढूँढू जो मैं खुद को, तो एक साया पाता हूँ,
जितना हूँ मैं खोता.... उतना... बढता तेरा शबाब हैं!

ज़िन्दगी की धूप में,तेरा आना.. एक पनाह की तरह,
अब और क्या उस से मांगू... तू मेरा सबसे बड़ा सबाब हैं!

Wednesday, August 17, 2011

छूटते घर के .. छूटते रिश्ते





उन पुरानी गलियों ने मुझे ऐसे देखा..
उन्होंने जैसे मुझसे कभी कोई वास्ता हीं नहीं रखा..
वहाँ पडी थी एक टूटी हुई डोरी .. अनकहे.. बेनाम से रिश्तो की,
और दूर तलक मुझे.. खुद के लिए कोई आसरा ना दिखा!

वो कमरे, जो मैने.. सदा हँसते देखे,
आज मुझे उनके सारे कोने दिख रहे थे
वो दीवारें, वो दरारें, वो टूटे हुए पलस्तर..
वो खाली अलमारियो में मेरे टूटे हुए चप्पल ...
मेरे ऊपर हँस और अपनी तन्हाईयो पे रो रहे थे!!

वो सीढीया जो मुझे कभी ऊपर धकेलती थी,
और कभी कभी. .. डराने के लिए नीचे खीचती थी,
उन्हें चढने के डर से कभी मैं .. दुसरो पर चिल्लाया
तो कभी मेहमानों के आने की खबर ले के उन्हें फांदता आया...
आज पहली बार हमने उन सीढीयो की गिनती देखी!!

घर का हर कोना .. आज अजीब.. अनजाना दिखने लगा,
छत से देखा .. हर एक नज़ारा बेनूर लगने लगा,
यही से कभी हमने .. भविष्य देखा था अपना
कोशिशे की थी .. जो नहीं है उसे भी बना लेंगे अपना
पर... आज मुझे .. मेरा अतीत, बहुत ... बहुत पुराना लगा!!

वो नुक्कड़, वो राहें, दुकान पे लोग और उनका शोर,
ये सब कुछ था, अब तक .. मेरा एक अहम् हिस्सा बने हुए,
ना छूटा मेरे दामन से, एक भी वो किस्सा,
जितनी की कोशिश, उतना मज़बूत हुआ ये रस्सा!!
आज, मेरी ये पहली .. ये सारें मेरी यादें .. मुझसे विदा ले रही हैं!!


घर क्या छूटा, लगा रूह छोड़ दी अपनी,
शरीर तो वही था, आज जीते जी आत्मा बदल दी अपनी..
वो जो पुरानी पहचान थी .. हमारे होने की अब तक,
वो जो तकदीर थी, उसके होने की वजह से अब तक
आज लगता है.. खुद अपनी पहचान बदल दी हमने!!

Sunday, August 14, 2011

ये जंग के हालात





वो जो मेरी गोली से मरा हैं..
वो हु-ब-हु..मुझ सा दिखता हैं..
उस के पास भी एक मुल्क और एक दिल था,
दोनों को लगाकर सीने से, वो मुझसे लड़ता था...!!

मैने उसे मारा, वरना वो मुझे मार देता,
वरना उसका कमान्डर उसका कोर्ट-मार्शल करवा देता..
वो भी एक मजबूर सिपाही था, मेरी तरह..
उसी मजबूरी में वो मुझे, शहीद का दर्जा दिलवा देता!!

उसके पर्स में भी..... उसकी बीवी की फोटो होगी..
मरने के बाद भी, ज़ेहन में.... बच्चो की चिंता होगी..
अपने माँ-बाप का वो भी लाडला बेटा ही होगा...
अब उन सब की आँखें, उसके लिए रोती होंगी..!!

जाने कब तक यूँ ही जंग चलती रहेगी..
कब तक मेरी या मेरे हमसाए की लाशें... गिरती रहेंगी.
कब अमन का कबूतर संगीनों पे चढकर बोलेगा.....
कब हमारी माएं..बहने... चूल्हे पर सांझी रोटियाँ सकेंगी...

Friday, August 5, 2011

आफरीन





देख के तुमको, मैं खुदा का मुरीद बन गया,
मंजिल अपनी छोड़, मैं तेरी राहो का हमसफ़र बन गया!

कड़ी से कड़ी मिली, यादों की ज़ंजीर बन गयी,
बिन कहे, मेरा एक फ़साना बन गया!

राह-ए-उल्फत के फ़साने का कोई इरादा नहीं था,
बस आप को देखा तो, जीने का बहाना बन गया!

कभी खुलती... कभी बंद होती.. ये मेरी निगाहें,
नज़रो के समंदर का, तेरा चेहरा किनारा बन गया!

पहले मैं ज़मी-दोज़.. बेसबब सा .. आवारा सा,
तेरे आने से मेरा भी, एक हसींन मुकाम बन गया!

खुदा भी हैरान हैं, तेरी ये शख्सियत देखकर,
उसे तो पता ही नहीं चला.. कैसे ये दूसरा आफताब बन गया!

मोहसिन तो मेरे बहुत हैं, कई हैं मेरे चाहने वाले....
पर बना के तुझको... वो ऊपर वाला ..... मेरा खुदा बन गया!

Wednesday, July 27, 2011

खोज - मैं जाऊ कहाँ





आते आते मैं इस मुकाम पे भी आ गया,
अब ये जहां छोड़ के मैं जाऊ कहाँ?
रिश्ते भी अब खोखले से नज़र आते हैं,
मैं तलाशू भी तो ... सुकून पाऊ कहाँ?

ऐतबार, इनकार, बेखुदी, दिल्लगी- इनकी अब मैं चिंता नहीं करता,
सोचू मैं इन सबको..... तो कैसे जी पाउँगा यहाँ?
भूख की जंग और ज़िन्दगी की परेशानियां .. क्या कम थी,
अब .. हो के तनहा ... मैं इन्हे बताऊ कहाँ?

हर इंसान, बस अपने ही में खोया हुआ है..
भगवान् को भी, अब बन्दों की सुध लेने का वक्त कहाँ?
दूर कही.. एक मशाल की लौ सी दिखती हैं,
बैठा हूँ खुद के अफ़सोस में, जाऊ .. तो मैं जाऊ कैसे वहाँ?

ना जाने क्यों, फिर भी मन जुड़ा-जुड़ा सा रहता है..
लगता है, शायद मेरा ही कुछ हिस्सा अभी बचा हैं यहाँ
आते-आते मैं इस मुकाम पे भी आ गया,
अब ये जहां छोड़ के जाऊ... तो जाऊ कहाँ?

Friday, July 15, 2011

दुनिया से हम ऐसे मिले




हो चाहे कितने भी गम, दिल में,
हम जब भी मिले....खुल के मिले!

दोस्त क्या.. हमने तो दुश्मनो को भी हमसफ़र बनाया,
जलने वाले हमेशा मेरी नज़रो के पीछे जले!

माना कि उसने मुझे दो फौलाद नहीं दिए,
गिला नहीं क्योंकि नसीब में .. मुझे उससे सिर्फ फूल मिले!

लिखी बिजली के तारो सी उसने किस्मत मेरी,
मुझे बस झटके और दुसरो को रौशनी मिले!

जख्मो से बैर नहीं, दोस्ती हैं मेरी अब इन से
ये जब भी मिले... मुझे मेरे अपनो से मिले!

कुछ ऐसी थी हस्ती उनकी कि आज तक उन्हें भुला नहीं सके,
और वो हमेशा ... हम से गैरो की तरह मिले!

कोई दोजख के डर से.. तो कोई जन्नत की चाह में मर रहा हैं,
हमको क्या लेना किसी से.. हमें दोनों.. इसी जहां में मिले!

Friday, July 8, 2011

अल्लाह ..... भगवान...... Jesus




ए मुझे बताने वाले, आज मैं तुझे समझाता हूँ,
रोज़ तूने इलज़ाम गिनवाए.. आज मैं .. तुझे उसके एहसान गिनवाता हूँ!

कीमती कार, लाजवाब इमारत, की तरह, ये प्यार उसका तोहफा हैं,
हैं कितना दिलदार ... मेरा पर्वत-ए-गार, आज मैं बतलाता हूँ!

सदको में जो है झुका, उस ने ये गुर पाया हैं,
किसने है पाया क्या क्या.. उससे ..... मैं तुझे बतलाता हूँ!

तूने बस ज़ख्म देखे, ज़ख्मो के चंद आंसू देखे,
आ देख, मैं तुझे आइना-ए-ज़िन्दगी में उसके नूर-ए-नज़र दिखाता हूँ!

सुनना पडे... तो मेरी आह नहीं, उसकी मिन्नतो को सुनना,
उसकी मन्नतो में मैं, अपना कलमा तुझे सुनाता हूँ!

हंस ले तू ए नादान.. वो भी तेरे संग हंसता हैं,
तेरी हंसी के लिए, उसने जो अश्क बहाए... उनको मैं दिखलाता हूँ!

रोते-रोते तो कभी तुझी से लड़ के... तूने अपने गम को भागते देखा..
हैं उसका ही ये तिलिस्म.. आ .. तुझको मैं सब समझाता हूँ!

Sunday, June 19, 2011

कैसे हैं आप ?




उनसे बिछड के हम रोते हैं,
किसको पता.. वो.. कैसे जीते होंगे!

सबके आगे तो वो हमेशा ही हँसते दिखेंगे,
मेरा नाम ले के देखना ... किसी कोने में खडे मिलेंगे!

अपने इश्क का स्वाद.. कुछ खट्टा.कुछ मीठा.. हम रोज़ चखते हैं,
वो भी कभी-कभी, अपने गालो पे नमक चखते होंगे!

खानाबदोश से हम.... कभी इस डगर, कभी उस डगर,
वो भी कभी-कभी अपने तलो में, दर्द की शिकायत करते होंगे!

महफ़िलो में कहाँ बशर, भीड़ से तन्हाई ज्यादा रास आती हैं,
उनसे पूछो, उनकी शामो में भी दो ही रंग होते होंगे!

आइनो, तस्वीरो, यादो के सहारे .... हम हो लिए,
वो भी दिन भर रास्तो पे निगाह बिछाते होंगे!

उनसे मैं अब क्या मांगू, क्या मैं कहूँ उन से...
वो तो अब खुद, खुदा की परस्तिश में लगे होंगे!

Monday, June 6, 2011

एक आखिरी बार





तेरी उस मुलाक़ात का सुर्ख नशा .. आज भी कायम है,
अंजाम भी हो आगाज़ सा, बस एक आखिरी बार चले आना!

एक हसीन तोहफा .. वक़्त मेरा.. तेरा इंतज़ार कर रहा हैं,
हो सके .. तो आ के दबे पाँव .. इसे ले जाना!

मेरी इश्क ... मेरा कुफ्र नहीं... सजदा-ए-सनम हैं,
हो सके तो मेरे बाद, ये इबादत तुम भी दोहराना!

नगमे, नज़ारें, महफिले, कहकशां, ये तुम्हे मुबारक सनम,
हो जब नशे में तुम, हमे मनहूस कहने चले आना!

मेरा हाल देखकर, तुम क्या आंसू बहाओगे,
एक अदद आह भर देना, बस इतना कर जाना!

होश अब धीरे-धीरे मेरा साथ छोड़ता जा रहा हैं,
मेरी रूह के सुकून के लिए, झूठ ही सही ... हमे "सनम" कह जाना!

Sunday, May 22, 2011

बिन तेरे...





तेरी यादों से मैं और क्या सिला पाउँगा,
तनहा रह के भी .. मैं अब ना तनहा रह पाउँगा!

मय्कदो, महफ़िलो की रौशनी कहाँ मेरे लिए,
मैं इनमें .. तेरे गेसूओ का अन्धेरा कहाँ पाउँगा!

करवटो, सिलवटो में बस चुकी है तेरी यादें,
होगी सुबह ..... तो मैं थोड़ा और सो जाउँगा!

याद करता हूँ, उन वीरानो में हमारी मुलाकातें,
कल उस दरख़्त से .. मैं तेरी निशानी मांग लाउँगा!!

याद करता हूँ तेरी बातें और जी लेता हूँ,
जाने कब तक मैं इस तरह ज़िन्दगी को टाल पाउँगा!

ना "जीवन" की सुनी.. ना "ज़िन्दगी" की मानी..इसने
जाने इस दिल को ... अब मैं कैसे संभाल पाउँगा!

बस कुछ देर की हैं मेरी ये चंद साँसे,
बस एक आखिरी बार रुला के... फिर मैं चला जाउंगा!

Tuesday, May 10, 2011

ज़िन्दगी- बस ऐसे जीना.....





उजालो से जब वास्ता रखना,
अंधेरो को अपना निगहबान रखना!

हवा.. जब तेज़.. बहुत तेज़ .. आँचल उड़ाने लगे,
पकडे तुम तमन्नाओं का .. हर दम .. दामन रखना!

पूरी हो हर ख्वाहिश .. जब कभी भी तेरी,
गज भर ज़मीन.. आखिरी सफ़र की.. तब भी तैयार रखना!

बुरा क्या, भला क्या... वक़्त की पहचान क्या है?
क्या होगा.. ये ना सोच.. बस अपना खुदा याद रखना!

गर्मी पड़े.. या.. सर्दी.... या हो चाहे फुहार,
तुम बस अपने तजुर्बे को याद रखना!

किसी कूचे से अगर .. दे सुनाई .. किसी की आवाज़,
हर दहकती आग के लिए चशम-ए-रहम साथ रखना!

तेरे साथ हुआ क्या-क्या बुरा.... उनको तू भूल ही जा,
क़यामत में पूछेगा "वो" ... अपनी नेकिया तू याद रखना!

Saturday, May 7, 2011

दोस्त...हमसे रूठ के कैसे रह पाओगे!!




जो इस तरह तुम हमसे रूठ जाओगे,
मेरी छोड़ो, तुम खुद कैसे तनहा रह पाओगे!

मानता हूँ कभी किसी समय, हम अजनबी थे,
क्या गुजरा वक़्त इतनी आसानी से भुला पाओगे!

हमारी दोस्ती का उसूल हैं.."हर हालात, हर पल का साथ"
तुम सिक्के के चित को पट से कैसे जुदा कर पाओगे!

सवाल हैं दुनिया के, कब तक अकेले जूझोगे इनसे,
बिन आजमाए मेरे दोस्त, मेरी दोस्ती पे इलज़ाम कैसे लगा पाओगे!

रहोगे अलग...तो खुद को खुद से कैसे बचाओगे,
कांटे हटाकर फूल को महफूज़ कैसे रख पाओगे!

ममता नहीं, वफ़ा नहीं, ये दोस्ती का दामन है दोस्त,
इसे भी छुडा लिया, तो दुनिया से कैसे लड़ पाओगे!

Sunday, April 17, 2011

बस एक ... तू!




इश्क के नाम से डर लगता था,
अब तो बिन इसके .... जीना ही एक बिमारी हैं!

पल पल का साथ कर अता ए मौला,
मेरे लिए तो ..यही .. दुनिया सारी हैं!

देख के उनको जो मिलता है सुकून,
एक इसी के लिए तो ....ये दुनिया मारी हैं!

कहीं रुका.. तो लगा ये ख्याल था वाजिब,
तुझी पे तो उसने ये दुनिया वारी हैं!

चिरागों से अब मुझे क्या लेना..
तेरा संग ही... अब रौशनी हमारी हैं!

नाम तेरा ले के जो मुझ पे हंसते हैं,
वो नहीं.. उनकी जुबान हमे प्यारी हैं!

तुझे बनाया उसने.. इसीलिए हम सजदा करते हैं,
वरना अपनी नहीं "उस" से कोई यारी हैं!

Saturday, April 9, 2011

उम्मीद और इंक़लाब



ना कहीं धुँआ हैं, ना राख उड़ रही हैं,
फिर भी ना जाने क्यों, लगता है...कही.. कोई चिंगारी जल रही हैं!

हर तरफ आवाम है ..... एक नया आयाम हैं,
फिर भी एक अजीब सी .... खामोशी दिख रही हैं!

आना अकेले .. जाना अकेले .... गुमान ये सबको ही हैं..
फिर भी बुत-परस्तिश की ... इंतिहा हो रही हैं!

किसी उधडे कपडे की तरह, मेरा कुछ अंश छूटता जा रहा हैं,
फिर भी दिल में, वापसी की ... उम्मीद .. जी रही हैं!

सुकून मिलता है .. शोर-ओ-गुल के बने रहने से...
बताओ आज कहाँ .. इंक़लाब की आवाज़ उठ रही हैं!

चिताए ही चिताए है नज़र मे ...... इस कोने से उस कोने तक,
एक मसीहा की उम्मीद में.... अब ये नज़र ... आग ढूँढ रही है!

Saturday, April 2, 2011

तेरी गलियों ... के सवाल





कौन है मेरा कातिल, उसे ढूँढ रहा हूँ मैं...
ले के कुछ सवाल, तेरी गलियों से आज बिछड़ रहा हूँ मैं!

माझी ये मेरा... मुझे और क्या देगा..
निशानी-ए-मोहसिन... दिल-ए-बेजान में लिए जा रहा हूँ मैं!

अलफ़ाज़ भी हैं,... और अरमान भी इस दिल में,
दबा के सीने में उनको, मुस्कुराए जा रहा हूँ मैं!

खैर-गाह हो तेरा अल्लाह, रहे सलामत हर पल तू,
नेकियाँ मेरी तेरे नाम हो, ये कलमा पडे जा रहा हूँ मैं!

कभी तू मुझे रूह सी, कभी साए सी लगती हैं,
इसीलिए छोड़ के सब अंधेरे, उजालो से दोस्ती निभा रहा हूँ मैं!

कहना तो मुझे भी होगा, अलविदा एक मुकाम पर,
बस उस-से पहले..खुद को, तुझ सा बनाए जा रहा हूँ मैं!

इश्क हैं मेरा कातिल, तुझे तो खबर भी नहीं,
तेरी ख़ुशी के लिए, हंसता हुआ रुखसत लिए जा रहा हूँ मैं!

Tuesday, March 22, 2011

वो एक आशिक हैं!





वो अपने आंसू दुनिया से छुपाकर हंसता हैं!
तो क्या..अगर वो उनकी यादों में किसी लम्हा रोता हैं!
बस यार की खुशनुमा आवाज़ और चहकती हंसी की यादों ने......
बस यार की खुशनुमा आवाज़ और चहकती हंसी की यादों ने
उसे एक ही पल में हंसना और रोना...दोनों सिखा दिया!!


इश्क सिर्फ एक नाम नहीं..एक आवाज़!.... एक साज़!....एक तरन्नुम हैं!
जान जाए इसे हर माकूल, नहीं ये इतनी सीधी धुन हैं!
जब अश्क बहाने में, इस दिल को सुकून मिलता हैं..........
जब अश्क बहाने में, इस दिल को सुकून मिलता हैं..........
ना पूछो, कि इंतज़ार-ए-यार में वो कितना सुकून पाता हैं!

वो अपने --------------------------------छुपाकर हंसता हैं,


आशिक कोई हस्ती नहीं कि आज फलक पे, कल ज़मीन पे होगा!
वो कोई खुदा भी नहीं जो हमेशा फलक पे राज़ करेगा!
वो एक ऐसी खुश-नसीब और बद-गुमान शख्शियत हैं यारों......
वो एक ऐसी खुश-नसीब और बद-गुमान शख्शियत हैं यारों......
वो यार की सूरत में अपनी तकदीर की रेखाएं ढूँढ़ता है

वो अपने --------------------------------छुपाकर हंसता हैं,

यार कोई ऐसी लत में ना पड़ जाए,
हो जहां जीना मुश्किल, वहा कोई आशियाने ना बनाये,
वो है उनका दिल.... जो उन्हे उस मोड़ पे.... दरख़्त सा खड़ा रखता है,
वरना कौन है वो सयाना, जो तूफानो में कश्ती चलाता हैं?

वो अपने --------------------------------छुपाकर हंसता हैं,

Monday, March 7, 2011

एक रात - आपकी यादों के साथ



आज फिर रात को हम इक इंतज़ार में जग गए,
अपने सारे ख्वाबो को आपकी यादो की नज़र कर गए..
जिन कश्तियों से थी, साहिल पे पहुचने की उम्मीद,
उन कश्तियों को छोड़, हम इश्क के दरिया में कूद गए

नहीं जानते वो कि क्या कसक-ए-मोहब्बत होती हैं,
सही भी ना जाए, वो उल्फत क्या होती हैं......
जो ना जान पाओ, तो वापिस चले आना,
हम ही बता देंगे कि क्या-क्या नसीहत-ए-इश्क होती हैं!!

उनकी आँखों में हम सारा जहां मुकम्मल देखते हैं,
वो न भी हो, तो हम यादो के साथ रहगुज़र कर लेते हैं..
मेरे हर अफसाने से, इस तरह जुड़ गयी हैं उनकी यादें,
अब अपने अक्स में भी हम उनका ही चेहरा देखते हैं!

Friday, February 25, 2011

अलफ़ाज़-ए-एहसास



आज मैं फिर आपसे कह रहा हूँ!
हर अलफ़ाज़ मे अपने एहसासों को पिरो रहा हूँ!
मेरी हर बात को दिल से सुनियेगा , दिल से महसूस कीजिएगा ,
मैं आपसे आज इस दिल की बात , उसी की जुबानी कह रहा हूँ!!!

जब से है देखा आपको , मैं कुदरत का दीवाना हो गया ,
छोड़ के हर खुबसूरत चीज़ , मैं आपका कायल हो गया ,
वो लोग जो समझते है ख़ाक मेरी दीवानगी को ,
उन्हें क्या पता , मैं आकाश से भी उपर जा रहा हूँ…

आज मैं फिर आपसे कह रहा हूँ!.....हर अलफ़ाज़ मे अपने एहसासों को पिरो रहा हूँ!

मेरा अक्स भी अब मुझसे खफा होता जा रहा है ,
तेरी तरफ मेरे लगाव को अपना दुश्मन मान रहा है
मैं भी इस तकलीफ को समझता हू ,
मैं अब खुद को , खुद से दूर , और तेरे पास पा रहा हूँ…

आज मैं फिर आपसे कह रहा हूँ!.....हर अलफ़ाज़ मे अपने एहसासों को पिरो रहा हूँ!

फिर भी मैं , तुझसे ये अलफ़ाज़ कहने से डरता हूँ!,
तू मुझसे बिछड़ ना जाए , इसी डर से चुप रहता हूँ!
पर अब ये लगता है , सब सच-सच आपसे कह देंगे ,
जो है बीच के सब फासले , उन्हें शब्दों से मिटा देंगे ..
इसीलिए .
इसीलिए ..
मेरी हर बात को दिल से सुनियेगा , दिल से महसूस कीजिएगा ,
मैं आपसे आज इस दिल की बात , उसी की जुबानी कह रहा हूँ!!!

आज मैं फिर आपसे कह रहा हूँ!.....हर अलफ़ाज़ मे अपने एहसासों को पिरो रहा हूँ!

Friday, February 18, 2011

मय और सनम!


















अभी तो थोड़ी ही पी हैं, ताकि खुद से दूर हो सकूँ!
अरे आप भी यही हो... चलो.... मैं कहीं और चलूँ!

अभी तो नज़र भी नहीं झुकी, अभी तो कदम भी साथ हैं,
हो सके तो तब आना, जब मैं खुद को ना संभाल सकूँ!

बस थोड़ी और मोहलत दो, थोड़ा और नसीब चमका लूँ,
क्या पता क़यामत हो और मैं आपका दीदार पा सकूँ!

मेरा खुदा मस्जिद में नहीं, मेरे प्याले में रहता हैं!
मैं इसीलिए पीता हूँ, ताकि दीदार-ए-यार का उस से एहसान पा सकूँ!

महफ़िल में और भी हैं.. उनसे भी कोई उनके पीने का सबब पूछे.
मुझे दिन की परवाह नहीं, पीता हूँ ताकि रात गुजार सकूँ!

बहुत हो गयी साकी, अब मुझे घर चलना चाहिए..
फिर मिलूंगा, बस जरा उनके खुमार को ज़रा चढने दूं!

Sunday, February 13, 2011

अदायगी-ए-इश्क-ए-महसूल




महसूल है एक हम पर, जिसे हमको चुकाना हैं,
जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!

गाह-ए-बगाहे नादानी में, हम दिल आपसे लगा बैठे,
गफलत का नहीं... ये मेरे दिल का फ़साना हैं!
...जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!

इजतिराब हैं ये मफर का, बस एक बार सुन लीजिये,
शायद ये लगे तुमको... ये कुछ जाना-पहचाना हैं!
...जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!

कहती है ये दुनिया.... हम दोनों है अलग-अलग,
मुझे अपने आफताब-ए-नसीब को ..... तेरे सितारों से मिलाना है!
...जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!

हैं मेरी भी एक हस्ती, हैं मुझको भी थोड़ा गुमान..
मुझे साथ तेरे चल के, बस थोड़ा सा इतराना है!
...जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!

मुत्फरीक अशरो से मैं क्या हाल-ए-दिल बयान करू...
हमे तो आपको किस्सा-ए-जिंदगानी सुनाना हैं!
...जानता है ये जहाँ जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!

महसूल है एक हम पर, जिसे हमको चुकाना हैं,
जानता है ये जहां जो किस्सा, वो आपको बतलाना हैं!

Tuesday, January 25, 2011

कोई तुझ सा नहीं.... कोई मुझ सा नहीं




मैं कहूं, इस कदर.. कोई मुझ सा नहीं,
पास हो के भी दूर, कोई तुझ सा नहीं!

दामन में तेरे, आज मैं सो था गया,
ख्वाबो के आँगन में भी, हसींन कोई तुझ सा नहीं!

मान जाती जो बिन कहे, तू हर बात मेरी,
रूठ के हमसे हमे जलाने में, ज़ालिम कोई तुम सा नहीं!

था इरादा दिल के खोये सुकून का सुराग ढूँढने का,
आँखों में उलझाने में, जनाब कोई तुम सा नहीं!

बस हर पल, मेरा तेरे चेहरे से मुखातिब रहना,
ऐसा तिलिस्म बनाने में, जानम कोई तुझ सा नहीं!

खुशिया हज़ार या दीवानगी ... में अगर पडा कभी चुनना.
"झट" तेरा नाम लेने वाला, दीवाना कोई मुझ सा नहीं!

मैं कहूं, इस कदर.. कोई मुझ सा नहीं,
मुझ जैसा "सयाना" शायद ही ना होगा कही!!

Sunday, January 9, 2011

मुझे अब भी याद है!





अपने ज़ेहन की वो कश्मकश, मुझे अब भी याद है,
आँखों में लिए कतरा.... लबो से मुस्कुराना याद हैं!

इश्क की बारीकिया, वो पेट की तितलियाँ,
तेरे रूप का पल पल निखरना... मुझे याद हैं!

हम खुश भी थे... वो एक मुकम्मल शाम थी,
आखिर में उसके, आपसे जुदा होना .... याद हैं!

दिल- मुझे मेरे इश्क के फायदे बता रहा था,
ज़ेहन का मेरी ठीक से खबर लेना भी याद हैं!

प्याला-ए-शराब क्या मुझे ... कही ले जाएगा,
मुझे तो तेरे छुए पानी की मदहोशी... बस याद है!