जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Friday, March 30, 2012
हिदायते
परछायिओं को कहाँ जुबान होती हैं,
वो बस आहट पर हिला करती हैं!
देख कर, सह कर... हम तो चले जाते हैं,
मांझी की दीवारों पे केवल आह रह जाती हैं!
कितना ही कोई वक़्त को आवाज़ लगा ले,
छूटी हुई जवानी वापिस नहीं आती हैं!
शायद गंगा-जमुना भी नहीं डरी होंगी किसी से इतना,
कुछ लोगो की रूह.. उनका चेहरा देख के जितना डर जाती हैं!
ये पहेली ज़िंदा रहते किसने सुलझाई हैं,
सदा-ए-मौत किसको कब सुनाई देती है!
प्याला-ए-मौत तो एक ना एक रोज़ सबको नसीब होगा,
देखे .. ये जिंदगानी किसको कितना दौडाती हैं!
Saturday, March 17, 2012
कुछ ऐसा हो !
कुछ ऐसा हो कि सबका गम कम हो,
मिले जो राह में, वो कुछ अजनबी कम हो!
कहा है उसने आज भी ना मिल पाउँगा,
खुदा-या .. मेरे जनाजे पे, उसकी मसरूफियत कुछ कम हो!
मुझे तो राख किया उसने, पर ऐ मौला,
मुझे जलाने वाले के हाथो में जलन कम हो!
घूमती, भागती दुनिया में.. उठता, गिरता इंसान,
जो छूटा, बस .. दिल में उसकी खलिश कुछ कम हो!
वो मासूम...आज भी आँखें मूंद कर, सपने देखना चाहता हैं,
सोचता हैं... कि शायद वहां दुनिया का स्याहपन शायद कम हो!
कहने को आज भी अक्सर हम हंसा करते हैं,
शायद मेरे हंसने से किसी के कुछ गम कम हो!
खड़े पेड़ो की तरह मूक हो के, बहुत कुछ देखा हमने,
दुआ है की अब जो हो.. वो बस बुरा कम हो!
Tuesday, March 6, 2012
किस को क्या फर्क पड़ता हैं!
फकीरों की फकीरी कौन चुरा सकता हैं,
देखे.. कोशिश करने वालो की नीयत पर क्या फर्क पड़ता हैं!
मेरे शब्दों पे कोई मुंह फेर के चला गया,
कोई "वाह" कह गया तो क्या फर्क पड़ता हैं!
कोई उड़ के आया, घर में चांदनी के रस्ते,
कोई आया फटे पाँव, तो क्या फर्क पड़ता हैं!
किसी ने नूर कहा, किसी ने सनम कहा,
किसी ने "दागी" कहा, चाँद को क्या फर्क पड़ता हैं!
कभी यादो तो कभी साँसों के सहारे चली ज़िन्दगी,
जो ठिठकी भी कहीं जाकर... ज़िन्दगी को क्या फर्क पड़ता हैं!
कईयों को देखा, कईयों को मायूस किया,
देखे.. आने वाला तूफ़ान, किस कदर हौसला रखता हैं!
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