जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Friday, March 30, 2012
हिदायते
परछायिओं को कहाँ जुबान होती हैं,
वो बस आहट पर हिला करती हैं!
देख कर, सह कर... हम तो चले जाते हैं,
मांझी की दीवारों पे केवल आह रह जाती हैं!
कितना ही कोई वक़्त को आवाज़ लगा ले,
छूटी हुई जवानी वापिस नहीं आती हैं!
शायद गंगा-जमुना भी नहीं डरी होंगी किसी से इतना,
कुछ लोगो की रूह.. उनका चेहरा देख के जितना डर जाती हैं!
ये पहेली ज़िंदा रहते किसने सुलझाई हैं,
सदा-ए-मौत किसको कब सुनाई देती है!
प्याला-ए-मौत तो एक ना एक रोज़ सबको नसीब होगा,
देखे .. ये जिंदगानी किसको कितना दौडाती हैं!
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परछायिओं Shadow
ReplyDeleteजुबान Tongue/Voice
आहट Little Sound
मांझी Past Life
रूह Soul
पहेली Riddle
जिंदगानी Life
Superb jeevan.........very deep thoughts;
ReplyDeleteand last one is very true.........zindagi bus hame daudarahi hai
-Abdul