Saturday, April 26, 2014

एक नयी शुरुआत...



मैं हाँ कहूँ, तुम ना करो.....

मैं हाँ के लिए आगे बढूँ,
तुम ना-ना करती पीछे हटो!
मैं लोक लुभावन वादे करूँ ,
तुम शर्म का आँचल पकडे रहो!
मैं जिद कर-कर के तुमसे पूछा करूँ,
पर.. तुम फिर भी इंकार करो!
मैं थक हार के फिर बैठ जाऊं......
तब जा कर तुम मेरे पास आओ,
अब तुम मुझ को मनाती हो!
और मैं रूठा सा रहता हूँ,
अब तुम हाँ करवाना चाहती हो!

पर अब मैं चिढ़ के बैठा हूँ.......

आओ इस ना खत्म होते खेल की शुरुआत करे
आओ हम कुछ ऐसे प्यार करे,
आओ हम ऐसे प्यार करे!