Saturday, October 26, 2013

तुम.... धड़कन सी लगती हो!




तुम मुझे मेरे सीने में धड़कन सी लगती हो.
हो कर भी दूर, तुम मुझे करीब ही लगती हो!

तुम आफरीन..मेहफिशा...किसी कली सी...
तुम मुझे किसी और जहां की लगती हो!

तुम जाड़ो के मौसम में, एक लिपटी रजाई सी....
और गर्मी में तुम मुझे,"पुरवाई" सी लगती हो!

देखू तुझे तो, मैं सारी कायनात भूल जाऊ,
तुम मुझे रब का दिया एक तोहफा हसीन लगती हो!

लोग जा जा के मस्जिद, भी ना पा सके 'उस' को,
तुम मुझको बस.... उस जैसी लगती हो!

कैसे मैं बताऊ तुम्हे, तुम मुझे कैसी लगाती हो?????
तुम बस मुझे ... मेरे सीने की धड़कन सी लगती हो!

Tuesday, October 15, 2013

मेरी लगन





अब कैसे बताऊँ, तू मेरी क्या लगती हैं?
तू मुझे कुछ-कुछ.. अपनी सी लगती हैं!

तेरा वो.. हर छोटी-छोटी बात पे मुस्कुराना,
इन ही से तो ये दुनिया.. हमे हसीं लगती हैं!

तेरे होने से दुनिया थोड़ी अलग सी लगती हैं,
वरना, ये बस एक तनहा भीड़ सी लगती हैं!

होंगे रुखसत तो अलविदा ना कहना,
तेरे होने के ख्याल से ही ज़िन्दगी.. ज़िन्दगी लगती हैं!

हर नए बसंत के नये पत्ते.. नये नये फूलों की तरह,
तेरी हर मुलाक़ात, मुझे हर रोज़ .. एक नयी मुलाकात सी लगती हैं!