जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Saturday, October 26, 2013
तुम.... धड़कन सी लगती हो!
तुम मुझे मेरे सीने में धड़कन सी लगती हो.
हो कर भी दूर, तुम मुझे करीब ही लगती हो!
तुम आफरीन..मेहफिशा...किसी कली सी...
तुम मुझे किसी और जहां की लगती हो!
तुम जाड़ो के मौसम में, एक लिपटी रजाई सी....
और गर्मी में तुम मुझे,"पुरवाई" सी लगती हो!
देखू तुझे तो, मैं सारी कायनात भूल जाऊ,
तुम मुझे रब का दिया एक तोहफा हसीन लगती हो!
लोग जा जा के मस्जिद, भी ना पा सके 'उस' को,
तुम मुझको बस.... उस जैसी लगती हो!
कैसे मैं बताऊ तुम्हे, तुम मुझे कैसी लगाती हो?????
तुम बस मुझे ... मेरे सीने की धड़कन सी लगती हो!
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आफरीन - Uncomparable
ReplyDeleteमेहफिशा - Attracting
पुरवाई - Morning breeeze
कायनात - World
तोहफा - Gift
मस्जिद - Mosque