जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Wednesday, July 17, 2013
तेरा खुदा-मेरा खुदा
क्या मेरे काफिर होने से तेरे खुदा को कोई गुरेज़ होगा,
आखिर मुझे भी तो ... उसने ही अपने हाथों से बनाया होगा!
मानने वालो का कहना है की हर शह में वो रहता हैं,
क्या मुझे रुलाने वालो ने, इतना भी ना जाना होगा!
बुत-परस्तों का मुझे यूँ नादानों की तरह पत्थर मारना,
उनका खुदा भी तो ... कहीं इन में ही रहता होगा!
काबा किये, मदीने गए, पढी इन्होने कई आयतें,
क्या ना देख पाने वालो को, खुदा ने काफिर बनाया होगा!
फक्र है उनको अपने मुस्तकबिल पर, जो खुदा को अपना कहते हैं,
क्या उन्होंने खुद की मुट्ठी को, खुदा की दरियादिली से बड़ा माना होगा!
Friday, July 5, 2013
तेरा-मेरा
हे राम, या अल्लाह, ओ गुरु जी, Oh Jesus
वो तो बस एक ही है, पर इंसान कहता है... ये तेरा है, वो मेरा हैं!
दिन रात की ये कशमकश, ता-उम्र ढोयी कठिनाईयाँ,
ना चैन देखा, ना नींद अपनी... बस कहते रहे, ये तेरा है, ये मेरा है!
छोड़ ना सके ताउम्र, छोटी-छोटी चीज़ों की ज़द्दो-जेहद,
वो तो मौत पर भी अपनी लड़ते रहे... ये तेरा है, ये मेरा है!
लड़-झगड़ के हमने कर दिए, एक ज़मीन के कई टुकड़े,
अब मिल के रोते है उस कोने पर... जो न तेरा है, ना मेरा है!
बरसात का ये मौसम फिर भिगोने चला आया,
आओ चले खेले उस पानी में... जो ना तेरा है, ना मेरा हैं!
आओ छोड़ के कि क्या तेरा है, क्या मेरा हैं,
दुआ करे उसके लिए... जो ना तेरा हैं, ना मेरा हैं!
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