Sunday, February 28, 2016

तो क्या बात होती!





अब कैसे कहुँ जो बीत गया, वो गुज़र गया,
जो हैं, वो अब भी उसी दौर की याद दिलाता है!

कहने को तो अब हम.. नौ-निहाल, जवान हो गए ,
पर रूठ के.. फिर मान के... जो ईदी मिलती, तो कुछ और बात होती !

शब्द क्या,अब तो लहजे से भी हमारी नेक-ख्याली झलकती है,
पर दोस्तों की गालियो से शुरुवात होती, तो कुछ और बात होती !

आँखों से बच जाए,ऐसा शिकार हुस्न-ओ-यार कोई नहीं,
उनकी गली के पत्थरो से भी पहचान होती, तो कुछ और बात होती!

लबो को भिगोती, गले में अटकी, हर एक जाम की कसम ,
वो खट्टी-मीठी गोलियाँ होती, तो कुछ और बात होती !!

हर कदम पर होशियार, ज्यादा तमीज़दार बदस्तूर होते चले गए ,
जो अंदर की चीख-ओ-पुकार सुनी होती, तो कुछ और बात होती !

ज़िन्दगी से कदम-दर-कदम, ले हौसला आगे बढ़े,
जो ज़िन्दगी भी साथ होती, तो कुछ और बात होती !

सामान से सम्मान तक, हर चीज़ एक शह बन गयी ,
जो मेरी भी एक औकात होती, तो कुछ और बात होती !

बनाया ये जहां , इतना खूबसूरत बनाने वाले ने ,
जो थोड़ी मेरी मुफलिसी कम होती, तो कुछ और बात होती !