Monday, August 31, 2015

मुझ सा कोई....






आँखों में कई ख्वाब हैं,
ख्वाबो में है एक चेहरा,
कहकर भी देखा, छूकर भी देखा,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!

वो कभी हँसता है खुद पर,
कभी बे-बात ही रो जाता हैं,
वो दिल की करता है, खुद की मर्ज़ी से,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!

वो लड़ता.. झगड़ता है, दुनिया से,
वो मिन्नतें करवाकर, लौट आता हैं,
इस आँख-मिचोली के खेल में भी,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!

वो अंधी रातो की आवाज़ सा,
वो उजली सुबहो के किरणों सा,
खुद को पल पल बदलता है,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!

वो देख के मुझको सोचता है,
आँखें मूंदकर कुछ-कुछ कहता है,
ना जाने किन बातो में उलझा है..
वो ... जो है मुझ सा,
वो... जो मैं नहीं!!