जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Wednesday, July 27, 2011
खोज - मैं जाऊ कहाँ
आते आते मैं इस मुकाम पे भी आ गया,
अब ये जहां छोड़ के मैं जाऊ कहाँ?
रिश्ते भी अब खोखले से नज़र आते हैं,
मैं तलाशू भी तो ... सुकून पाऊ कहाँ?
ऐतबार, इनकार, बेखुदी, दिल्लगी- इनकी अब मैं चिंता नहीं करता,
सोचू मैं इन सबको..... तो कैसे जी पाउँगा यहाँ?
भूख की जंग और ज़िन्दगी की परेशानियां .. क्या कम थी,
अब .. हो के तनहा ... मैं इन्हे बताऊ कहाँ?
हर इंसान, बस अपने ही में खोया हुआ है..
भगवान् को भी, अब बन्दों की सुध लेने का वक्त कहाँ?
दूर कही.. एक मशाल की लौ सी दिखती हैं,
बैठा हूँ खुद के अफ़सोस में, जाऊ .. तो मैं जाऊ कैसे वहाँ?
ना जाने क्यों, फिर भी मन जुड़ा-जुड़ा सा रहता है..
लगता है, शायद मेरा ही कुछ हिस्सा अभी बचा हैं यहाँ
आते-आते मैं इस मुकाम पे भी आ गया,
अब ये जहां छोड़ के जाऊ... तो जाऊ कहाँ?
Friday, July 15, 2011
दुनिया से हम ऐसे मिले
हो चाहे कितने भी गम, दिल में,
हम जब भी मिले....खुल के मिले!
दोस्त क्या.. हमने तो दुश्मनो को भी हमसफ़र बनाया,
जलने वाले हमेशा मेरी नज़रो के पीछे जले!
माना कि उसने मुझे दो फौलाद नहीं दिए,
गिला नहीं क्योंकि नसीब में .. मुझे उससे सिर्फ फूल मिले!
लिखी बिजली के तारो सी उसने किस्मत मेरी,
मुझे बस झटके और दुसरो को रौशनी मिले!
जख्मो से बैर नहीं, दोस्ती हैं मेरी अब इन से
ये जब भी मिले... मुझे मेरे अपनो से मिले!
कुछ ऐसी थी हस्ती उनकी कि आज तक उन्हें भुला नहीं सके,
और वो हमेशा ... हम से गैरो की तरह मिले!
कोई दोजख के डर से.. तो कोई जन्नत की चाह में मर रहा हैं,
हमको क्या लेना किसी से.. हमें दोनों.. इसी जहां में मिले!
Friday, July 8, 2011
अल्लाह ..... भगवान...... Jesus
ए मुझे बताने वाले, आज मैं तुझे समझाता हूँ,
रोज़ तूने इलज़ाम गिनवाए.. आज मैं .. तुझे उसके एहसान गिनवाता हूँ!
कीमती कार, लाजवाब इमारत, की तरह, ये प्यार उसका तोहफा हैं,
हैं कितना दिलदार ... मेरा पर्वत-ए-गार, आज मैं बतलाता हूँ!
सदको में जो है झुका, उस ने ये गुर पाया हैं,
किसने है पाया क्या क्या.. उससे ..... मैं तुझे बतलाता हूँ!
तूने बस ज़ख्म देखे, ज़ख्मो के चंद आंसू देखे,
आ देख, मैं तुझे आइना-ए-ज़िन्दगी में उसके नूर-ए-नज़र दिखाता हूँ!
सुनना पडे... तो मेरी आह नहीं, उसकी मिन्नतो को सुनना,
उसकी मन्नतो में मैं, अपना कलमा तुझे सुनाता हूँ!
हंस ले तू ए नादान.. वो भी तेरे संग हंसता हैं,
तेरी हंसी के लिए, उसने जो अश्क बहाए... उनको मैं दिखलाता हूँ!
रोते-रोते तो कभी तुझी से लड़ के... तूने अपने गम को भागते देखा..
हैं उसका ही ये तिलिस्म.. आ .. तुझको मैं सब समझाता हूँ!
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