Friday, November 23, 2012

डर




अक्सर किनारे से, लहरों और साहिल के पत्थरों को घंटो देखा करता था,
उन्ही की इस लड़ाई से, अब मैं दरिया में जाने से डरता हूँ!

कोई तो बता दे कि अब मेरी मंजिल कहाँ है,
इतना भटका हूँ कि अब घर जाने से डरता हूँ!

उसने तो सही ही कहा था, कोई झूठ नहीं ज़माने से,
जो हुआ हश्र उसका, देख के ... मैं सच से डरता हूँ!

इतना टूटा हूँ कि अब जुड़ने से डर लगता हैं,
शिकायत नहीं मुझको जोड़ो से, पर मैं इन जोड़ो के बीच की दरारों से डरता हूँ!

डर है अब के मैं जो टूटा ... दोबारा ना जुड़ पाऊंगा !


Friday, November 9, 2012

सबक






भूल को भुलाने से भुलावा छलावा बन जाता हैं,
मिले जो सबक भूलो से, उसे आगे बढाते जाओ!

बादलो का क्या, कभी घिरते ... तो कभी बरस कर भी चले जाते हैं,
पर याद रखना कि जो गरजते है, उन बादलो से अपनी नज़र हटाओ!

नज़रिए की नज़र से नहीं, नज़र के नज़रिए से बात बनती हैं,
हो सके तो अपनी नज़र में दूसरो की नज़र लाओ!

कभी आंसू, कभी ख़ुशी, कभी चोट तो कभी मरहम मिला,
किस से क्या मिला, ये ना सोच.. बस कदम बढ़ाते जाओ!