Friday, November 23, 2012

डर




अक्सर किनारे से, लहरों और साहिल के पत्थरों को घंटो देखा करता था,
उन्ही की इस लड़ाई से, अब मैं दरिया में जाने से डरता हूँ!

कोई तो बता दे कि अब मेरी मंजिल कहाँ है,
इतना भटका हूँ कि अब घर जाने से डरता हूँ!

उसने तो सही ही कहा था, कोई झूठ नहीं ज़माने से,
जो हुआ हश्र उसका, देख के ... मैं सच से डरता हूँ!

इतना टूटा हूँ कि अब जुड़ने से डर लगता हैं,
शिकायत नहीं मुझको जोड़ो से, पर मैं इन जोड़ो के बीच की दरारों से डरता हूँ!

डर है अब के मैं जो टूटा ... दोबारा ना जुड़ पाऊंगा !


2 comments:

  1. लहरों - Waves
    साहिल - Shore
    पत्थरों - Stones
    दरिया - Sea
    मंजिल - Destination
    भटका - To Stray
    ज़माने - World
    हश्र - Outcome
    शिकायत - Complaint
    जोड़ो - Joints
    दरारों - Leakages

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