जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Thursday, December 16, 2010
नया एहसास
फूलों की खुशबु का एहसास ना होता,
ना होते गर साथ तो, ये जहां मुकम्मल ना होता!
तन्हाई में भी अकेला ना होना, अजीब सा लगता हैं,
जो आप न होते, तो ये एहसान नसीब ना होता!
इश्क को बुरा कहने वाले तो बहुत मिले .... बेशुमार मिले,
अच्छाई करने का मौका, हमको भी न मिला होता!
आँखों में रतजगे और दिल में उफान लिए फिरते हैं,
अश्को में इश्क का, ये मुजरिम ना मिला होता!
जीने की ललक .... और मर मिटने की आरज़ू,
बिन पीये, यूं ही बहक जाना... ये जलवा ना मैं जान पाता!
कुछ ने इश्क को खेल कहा, किसी ने सौदा या जुआ..
तेरे बिन मैं अपने इस तरन्नुम को कैसे जान पाता!
दरिया से गहरा,आसमान से उंचा... देखने की तमन्ना थी,
ना मिलते आप, तो ये अरमान... अरमान ही रह जाता!
आते आते मैं इस मुकाम पर भी आ ही गया!
तेरी महफ़िल ना होती, तो जाने मैं कहाँ जाता!
Monday, December 13, 2010
उस मुलाक़ात.... की चाहत!
मैं बस उन मदहोश आँखों में खोना चाहता था,
उन खामोश निगाहों से बातें करना चाहता था!
बोल तो बहुत थे मेरे पास, कहने को.. सुनने को!
पर .... मैं सिर्फ एक एहसास बताना चाहता था!
दिल में गुबार और होठो पे खामोशी रखी मैने,
मैं अपनी आरजूओ का ज्वालामुखी जलाना चाहता था!
तेरी हंसी का तो मैं हमेशा से ही कायल रहा,
मैं बस उसे अपना मुकद्दर बनाना चाहता था!
तेरी मसरूफियत ने ही तो मुझे मजबूर कर दिया,
वरना मैं तुझे अपनी मसरूफियत बनाना चाहता था!
पलकों के आंसू तो कब के सूख चुके थे,
मैं अब.... बस दिल का चैन पाना चाहता था!
Thursday, December 9, 2010
LOVE- कल vs आज
वो इज़हार-ए-इश्क के लिए एक दिन चाहते हैं,
हम इज़हार-ए-दिल के लिए एक इश्किया चाहते हैं!
वो चंद कागज़ के टुकडो पर हाल-ए-दिल बयान करते हैं,
हम हाल-ए-दिल... टुकडा-ए-दिल से ही बयान करते हैं!
चंद शायरों की पुरानो नगमो से वो इश्क पाना चाहते हैं,
हम नगमा-ए-इश्क की हर रोज़ एक नयी ग़ज़ल गाते हैं!
वो तोहफों में शीशे के दिल, खिलोने बना के पेश करते हैं,
हम शीशा-ए-दिल में उनकी तस्वीर कैद किये फिरते हैं!
वो घूमने जाते हैं, और सफ़र में निगाहे राहो में रखते हैं,
हम निगाह-ए-सनम होकर सफ़र-ए-ज़िन्दगी पूरा करते हैं!
वो ज़िन्दगी भर इश्क करने की कसमे खाते हैं, एलान करते हैं,
वो रुसवा ना हो जाए, इसीलिए हम तन्हाईयो में भी उन्हे "वो" कह के बुलाते हैं!
उनका इश्क हमे कुछ कुछ इश्क जैसा लगता हैं,
हम तो सदका-ए-सनम में इसे बस "ज़िन्दगी" कह देते हैं!
हम इज़हार-ए-दिल के लिए एक इश्किया चाहते हैं!
वो चंद कागज़ के टुकडो पर हाल-ए-दिल बयान करते हैं,
हम हाल-ए-दिल... टुकडा-ए-दिल से ही बयान करते हैं!
चंद शायरों की पुरानो नगमो से वो इश्क पाना चाहते हैं,
हम नगमा-ए-इश्क की हर रोज़ एक नयी ग़ज़ल गाते हैं!
वो तोहफों में शीशे के दिल, खिलोने बना के पेश करते हैं,
हम शीशा-ए-दिल में उनकी तस्वीर कैद किये फिरते हैं!
वो घूमने जाते हैं, और सफ़र में निगाहे राहो में रखते हैं,
हम निगाह-ए-सनम होकर सफ़र-ए-ज़िन्दगी पूरा करते हैं!
वो ज़िन्दगी भर इश्क करने की कसमे खाते हैं, एलान करते हैं,
वो रुसवा ना हो जाए, इसीलिए हम तन्हाईयो में भी उन्हे "वो" कह के बुलाते हैं!
उनका इश्क हमे कुछ कुछ इश्क जैसा लगता हैं,
हम तो सदका-ए-सनम में इसे बस "ज़िन्दगी" कह देते हैं!
Subscribe to:
Posts (Atom)