जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Wednesday, November 20, 2013
सचमुच दुनिया बहुत लम्बी हो गयी हैं!
दुनिया बहुत छोटी है दोस्त.. बस इतना ही देख लो,
शाम को खोया सूरज, फिर अगले रोज़ खिड़की पर दोबारा दिख जाता हैं!
पूछा एक रोज़ मैंने उस के यूँ ही चले जाने का कारण,
बोला खिल-खिला के कि जाता मैं हूँ या तुम,
मैं तो रहता हूँ यही.. तुम ही दिन भर मुझसे आँखे चुरा के,
अपने ही काम में मशरूफ़ रहते हो तुम,
जो आ जाती है थकान, मुझसे नज़रे चुराने में,
तो आँख मूँद लेते हो, और कहते हो .. "मैं खो गया"!
चुभ गयी उसकी दिल्लगी और अपनी बेरुखी,
याद किया कब से नहीं देखा मैंने पूर्णिमा का चाँद,
अब तो वो CFL ही चाँद सूरज लगता हैं,
और SHOWER ही बरसात!!
वो A/C के सामने.. मुंह पे आती हवा
बस यूँ ही खुद को कश्मीर में खडा महसूस करता हूँ!
बाकी सब एहसास तो पा लेता हूँ,
पर दोस्तों की वो कमीनी गालियाँ,
बेटे की बढती लम्बाई.
माँ- पिताजी के चेहरे की झुर्रियां,
ओर बीवी की मुस्कराहट का राज़,
और उनके साथ जुड़े कई सारे एहसास भूल गया हूँ!
सचमुच दुनिया बहुत लम्बी हो गयी हैं!
Saturday, November 2, 2013
कविता
सोचता हूँ कैसे शुरुवात करू, इस अफ़साने का,
शुरुआत एक कविता की... कविता के इस अफ़साने का!
रहता है इंतज़ार.. बस उनकी आती missed calls का,
फिर बेताब हो जाता है मन, उसके पीछे के कारणों को जानने का!
अक्सर तो हम उन्हें सुना ही करते है,
उनकी बातो और हंसी में हम खो जाते है हाल इस ज़माने का!
कहना तो हम चाहते है बहुत कुछ उनसे...
पर उनकी आँखें देखकर भूल जाते है मकसद अपनी बातों का!
मुश्किल लग रहा है ये कुछ दिन काटना..
इंतज़ार के इन पलो को यूँ हथेलियों पे गिनना!
सोचता हूँ ज़रूर मेरे पिछले जनम के सबाब का आप फल होंगी,
इस जनम में तो मुझे याद नहीं आता कोई कारण, उस के इस प्रसाद का!
पहले हम तन्हाई में खुद को सोचा करते थे,
अब तो वक़्त ही नहीं मिलता, खुद को तुझसे बचाने का!
कभी कभी जो हम सोचते ही शायद आज खुश रहेंगे!
पर पूरा दिन निकल जाता है एक नयी धुन तुझ पर बनाने में!
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