जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Thursday, July 8, 2010
बद-गुमाँ
सोचता था कि ये एक गुमाँ होगा,
उसके चेहरे में कोई आइना होगा!
उसकी बातें तो हमेशा मुझे खीचती थी,
बातो में ही, उसकी कोई नशा होगा!
तन्हाई में भी वो साथ मेरे रहती थी,
पिछले जनम का, ये हमारा रिश्ता होगा!
यादों में आज भी उनकी खुशबु हैं शामिल,
ये तब की होगी, जब मैने उन्हे छुआ होगा!
वो थी जब हंसती मेरी बातों पर,
लगता.. उसके दिल में भी मेरी मुकाम होगा!
आज नहीं हैं वो साथ मेरे...
पर मेरी धड़कन से, उसका भी दिल चलता होगा!
Sunday, July 4, 2010
तेरा इश्क ही मेरी पहचान है...मैं इसे छुपाऊ कैसे???
तेरी खुश्बू को अपनी साँसों से मिटाऊ कैसे,
यादो के साहिल से तेरी तस्वीर की रेत हटाऊ कैसे?
वैसे तो दोस्त अब भी हाल-ए-दिल पूछते है,
उनको मैं अपना दर्द-ए-दिल, ये दिखाऊ कैसे?
कहते है मय भुला देती है, सारे ही गम..
मैं पैमानों में नाचती, तेरी मुस्कान को भुलाऊ कैसे?
लोग कहते है इश्क देता है सिर्फ़ गम, ना कि खुशी किसी को,
मैं इन नादानों को, अपनी अन्दर की कश-म-कश दिखाऊ कैसे?
तेरी आवाज़ को मैं अब भी, अपनी तन्हाई में संग पाता हूँ,
अपनी इस खामोश मुफलिसी को, खुद ही से छुपाऊ कैसे?
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