Wednesday, November 30, 2016

अजब ग़ज़ब



वो जो मेरे साथ है, वो मेरा चेहरा पढ़ लेता है..
उसी ने बनाया मुझे, वही अक्सर मुझे तोड़ देता हैं!

किस्मत को सूना हैं उसने हाथो की लकीरो में बसा रखा हैं,
तो क्यों किसी के माथे की सिलवटे मेरा दर्द बयाँ करती हैं!

देखा तो नहीं, कभी तुझे लड़ते हुए, हिस्सो का बटवारां करते हुए,
पर तूने ही तो कुरुक्षेत्र में पांडवो को उनका हक़ दिलवाया था!



Sunday, February 28, 2016

तो क्या बात होती!





अब कैसे कहुँ जो बीत गया, वो गुज़र गया,
जो हैं, वो अब भी उसी दौर की याद दिलाता है!

कहने को तो अब हम.. नौ-निहाल, जवान हो गए ,
पर रूठ के.. फिर मान के... जो ईदी मिलती, तो कुछ और बात होती !

शब्द क्या,अब तो लहजे से भी हमारी नेक-ख्याली झलकती है,
पर दोस्तों की गालियो से शुरुवात होती, तो कुछ और बात होती !

आँखों से बच जाए,ऐसा शिकार हुस्न-ओ-यार कोई नहीं,
उनकी गली के पत्थरो से भी पहचान होती, तो कुछ और बात होती!

लबो को भिगोती, गले में अटकी, हर एक जाम की कसम ,
वो खट्टी-मीठी गोलियाँ होती, तो कुछ और बात होती !!

हर कदम पर होशियार, ज्यादा तमीज़दार बदस्तूर होते चले गए ,
जो अंदर की चीख-ओ-पुकार सुनी होती, तो कुछ और बात होती !

ज़िन्दगी से कदम-दर-कदम, ले हौसला आगे बढ़े,
जो ज़िन्दगी भी साथ होती, तो कुछ और बात होती !

सामान से सम्मान तक, हर चीज़ एक शह बन गयी ,
जो मेरी भी एक औकात होती, तो कुछ और बात होती !

बनाया ये जहां , इतना खूबसूरत बनाने वाले ने ,
जो थोड़ी मेरी मुफलिसी कम होती, तो कुछ और बात होती !

Monday, August 31, 2015

मुझ सा कोई....






आँखों में कई ख्वाब हैं,
ख्वाबो में है एक चेहरा,
कहकर भी देखा, छूकर भी देखा,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!

वो कभी हँसता है खुद पर,
कभी बे-बात ही रो जाता हैं,
वो दिल की करता है, खुद की मर्ज़ी से,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!

वो लड़ता.. झगड़ता है, दुनिया से,
वो मिन्नतें करवाकर, लौट आता हैं,
इस आँख-मिचोली के खेल में भी,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!

वो अंधी रातो की आवाज़ सा,
वो उजली सुबहो के किरणों सा,
खुद को पल पल बदलता है,
वो है मुझ सा, पर वो मैं नहीं!!

वो देख के मुझको सोचता है,
आँखें मूंदकर कुछ-कुछ कहता है,
ना जाने किन बातो में उलझा है..
वो ... जो है मुझ सा,
वो... जो मैं नहीं!!

Saturday, April 26, 2014

एक नयी शुरुआत...



मैं हाँ कहूँ, तुम ना करो.....

मैं हाँ के लिए आगे बढूँ,
तुम ना-ना करती पीछे हटो!
मैं लोक लुभावन वादे करूँ ,
तुम शर्म का आँचल पकडे रहो!
मैं जिद कर-कर के तुमसे पूछा करूँ,
पर.. तुम फिर भी इंकार करो!
मैं थक हार के फिर बैठ जाऊं......
तब जा कर तुम मेरे पास आओ,
अब तुम मुझ को मनाती हो!
और मैं रूठा सा रहता हूँ,
अब तुम हाँ करवाना चाहती हो!

पर अब मैं चिढ़ के बैठा हूँ.......

आओ इस ना खत्म होते खेल की शुरुआत करे
आओ हम कुछ ऐसे प्यार करे,
आओ हम ऐसे प्यार करे!

Friday, December 13, 2013

अभिप्राय





वो लोगो की जलन से जल-जल कर मरी,
वो, जो जलने के कारण जल चाह रही थी!

उज्जवल कल की चाह में उसने अपने कल को ही ख़तम कर लिया,
वो, जो अपने कल की कहानी आने वाले कल को सुनाना चाहता था!

चाल तो उसकी कोई समझ ना सका,
वो, जिसके कदमो की चाल पे सबकी निगाहें रहती थी!