जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Wednesday, December 5, 2012
किस को क्या पता ??
रख ज़िन्दगी को महफूज़ .. हासिल क्या होगा,
आगाज़ में पडा था रोना, सोच इसका अंज़ाम क्या होगा?
गुलिस्ताँ में, परस्तिश से .. हमने लोगो को खुश होते देखा,
जाने उनके गमो ने, उन्हें कितना परेशान किया होगा?
कहते है, उजाले हर किसी को देर-सवेर नसीब होते हैं,
कहने वालो ने जाने कितने अंधेरो का सामना किया होगा?
उम्र भर देखा, उन्होंने जाने वालो की वापसी का रस्ता,
किसे पता, किसका कारवां .. कहाँ जा कर उजड़ा होगा?
जीते जी, बस यूँ ही सोच कर.. उम्र के धागे कच्चे किये मैंने,
जाने मेरे अफसानों ने, क्या किसी का भला किया होगा?
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महफूज़ - Safe
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अफसानों - Stories
I always like your poems :-)
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