Wednesday, July 27, 2011

खोज - मैं जाऊ कहाँ





आते आते मैं इस मुकाम पे भी आ गया,
अब ये जहां छोड़ के मैं जाऊ कहाँ?
रिश्ते भी अब खोखले से नज़र आते हैं,
मैं तलाशू भी तो ... सुकून पाऊ कहाँ?

ऐतबार, इनकार, बेखुदी, दिल्लगी- इनकी अब मैं चिंता नहीं करता,
सोचू मैं इन सबको..... तो कैसे जी पाउँगा यहाँ?
भूख की जंग और ज़िन्दगी की परेशानियां .. क्या कम थी,
अब .. हो के तनहा ... मैं इन्हे बताऊ कहाँ?

हर इंसान, बस अपने ही में खोया हुआ है..
भगवान् को भी, अब बन्दों की सुध लेने का वक्त कहाँ?
दूर कही.. एक मशाल की लौ सी दिखती हैं,
बैठा हूँ खुद के अफ़सोस में, जाऊ .. तो मैं जाऊ कैसे वहाँ?

ना जाने क्यों, फिर भी मन जुड़ा-जुड़ा सा रहता है..
लगता है, शायद मेरा ही कुछ हिस्सा अभी बचा हैं यहाँ
आते-आते मैं इस मुकाम पे भी आ गया,
अब ये जहां छोड़ के जाऊ... तो जाऊ कहाँ?

1 comment:

  1. मुकाम Destination
    खोखले Hollow
    तलाशू Search
    सुकून Sense of fulfilment
    ऐतबार To rely on
    इनकार To say NO
    बेखुदी Selfishness
    दिल्लगी Passionately put your heart on one thing/task/person
    परेशानियां Problems
    बन्दों Followers of god
    मशाल Wooden holder of fire, used in nights

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