जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Saturday, March 17, 2012
कुछ ऐसा हो !
कुछ ऐसा हो कि सबका गम कम हो,
मिले जो राह में, वो कुछ अजनबी कम हो!
कहा है उसने आज भी ना मिल पाउँगा,
खुदा-या .. मेरे जनाजे पे, उसकी मसरूफियत कुछ कम हो!
मुझे तो राख किया उसने, पर ऐ मौला,
मुझे जलाने वाले के हाथो में जलन कम हो!
घूमती, भागती दुनिया में.. उठता, गिरता इंसान,
जो छूटा, बस .. दिल में उसकी खलिश कुछ कम हो!
वो मासूम...आज भी आँखें मूंद कर, सपने देखना चाहता हैं,
सोचता हैं... कि शायद वहां दुनिया का स्याहपन शायद कम हो!
कहने को आज भी अक्सर हम हंसा करते हैं,
शायद मेरे हंसने से किसी के कुछ गम कम हो!
खड़े पेड़ो की तरह मूक हो के, बहुत कुछ देखा हमने,
दुआ है की अब जो हो.. वो बस बुरा कम हो!
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अजनबी Stranger
ReplyDeleteमसरूफियत Busy
खलिश Emptiness
स्याहपन Blackness
मूक Silent
nice one jeevan....quite a lot of improvement
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