जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Saturday, April 2, 2011
तेरी गलियों ... के सवाल
कौन है मेरा कातिल, उसे ढूँढ रहा हूँ मैं...
ले के कुछ सवाल, तेरी गलियों से आज बिछड़ रहा हूँ मैं!
माझी ये मेरा... मुझे और क्या देगा..
निशानी-ए-मोहसिन... दिल-ए-बेजान में लिए जा रहा हूँ मैं!
अलफ़ाज़ भी हैं,... और अरमान भी इस दिल में,
दबा के सीने में उनको, मुस्कुराए जा रहा हूँ मैं!
खैर-गाह हो तेरा अल्लाह, रहे सलामत हर पल तू,
नेकियाँ मेरी तेरे नाम हो, ये कलमा पडे जा रहा हूँ मैं!
कभी तू मुझे रूह सी, कभी साए सी लगती हैं,
इसीलिए छोड़ के सब अंधेरे, उजालो से दोस्ती निभा रहा हूँ मैं!
कहना तो मुझे भी होगा, अलविदा एक मुकाम पर,
बस उस-से पहले..खुद को, तुझ सा बनाए जा रहा हूँ मैं!
इश्क हैं मेरा कातिल, तुझे तो खबर भी नहीं,
तेरी ख़ुशी के लिए, हंसता हुआ रुखसत लिए जा रहा हूँ मैं!
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खूबसूरत अभिव्यक्ति ...
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