जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Saturday, April 9, 2011
उम्मीद और इंक़लाब
ना कहीं धुँआ हैं, ना राख उड़ रही हैं,
फिर भी ना जाने क्यों, लगता है...कही.. कोई चिंगारी जल रही हैं!
हर तरफ आवाम है ..... एक नया आयाम हैं,
फिर भी एक अजीब सी .... खामोशी दिख रही हैं!
आना अकेले .. जाना अकेले .... गुमान ये सबको ही हैं..
फिर भी बुत-परस्तिश की ... इंतिहा हो रही हैं!
किसी उधडे कपडे की तरह, मेरा कुछ अंश छूटता जा रहा हैं,
फिर भी दिल में, वापसी की ... उम्मीद .. जी रही हैं!
सुकून मिलता है .. शोर-ओ-गुल के बने रहने से...
बताओ आज कहाँ .. इंक़लाब की आवाज़ उठ रही हैं!
चिताए ही चिताए है नज़र मे ...... इस कोने से उस कोने तक,
एक मसीहा की उम्मीद में.... अब ये नज़र ... आग ढूँढ रही है!
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चिंगारी spark
ReplyDeleteआवाम people
आयाम dimension
अंश part
शोर-ओ-गुल noise
इंक़लाब revolution
चिताए dead body
मसीहा saviour