जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Friday, February 18, 2011
मय और सनम!
अभी तो थोड़ी ही पी हैं, ताकि खुद से दूर हो सकूँ!
अरे आप भी यही हो... चलो.... मैं कहीं और चलूँ!
अभी तो नज़र भी नहीं झुकी, अभी तो कदम भी साथ हैं,
हो सके तो तब आना, जब मैं खुद को ना संभाल सकूँ!
बस थोड़ी और मोहलत दो, थोड़ा और नसीब चमका लूँ,
क्या पता क़यामत हो और मैं आपका दीदार पा सकूँ!
मेरा खुदा मस्जिद में नहीं, मेरे प्याले में रहता हैं!
मैं इसीलिए पीता हूँ, ताकि दीदार-ए-यार का उस से एहसान पा सकूँ!
महफ़िल में और भी हैं.. उनसे भी कोई उनके पीने का सबब पूछे.
मुझे दिन की परवाह नहीं, पीता हूँ ताकि रात गुजार सकूँ!
बहुत हो गयी साकी, अब मुझे घर चलना चाहिए..
फिर मिलूंगा, बस जरा उनके खुमार को ज़रा चढने दूं!
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मोहलत Time
ReplyDeleteप्याले Cup
दीदार-ए-यार Sight of Beloved
खुमार Madness