जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Tuesday, January 25, 2011
कोई तुझ सा नहीं.... कोई मुझ सा नहीं
मैं कहूं, इस कदर.. कोई मुझ सा नहीं,
पास हो के भी दूर, कोई तुझ सा नहीं!
दामन में तेरे, आज मैं सो था गया,
ख्वाबो के आँगन में भी, हसींन कोई तुझ सा नहीं!
मान जाती जो बिन कहे, तू हर बात मेरी,
रूठ के हमसे हमे जलाने में, ज़ालिम कोई तुम सा नहीं!
था इरादा दिल के खोये सुकून का सुराग ढूँढने का,
आँखों में उलझाने में, जनाब कोई तुम सा नहीं!
बस हर पल, मेरा तेरे चेहरे से मुखातिब रहना,
ऐसा तिलिस्म बनाने में, जानम कोई तुझ सा नहीं!
खुशिया हज़ार या दीवानगी ... में अगर पडा कभी चुनना.
"झट" तेरा नाम लेने वाला, दीवाना कोई मुझ सा नहीं!
मैं कहूं, इस कदर.. कोई मुझ सा नहीं,
मुझ जैसा "सयाना" शायद ही ना होगा कही!!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ReplyDelete