जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Thursday, May 17, 2012
ये कैसा नज़ारा
अपने दिल के किसी एहसास में कही गुम सा,
अपने ही गम में डूबा , ये आलम ग़मगीन खामोश सा!
रतजगो में बैचैनी , अंधेरो में सब उदास हैं,
फलक पे भी आजकल , दिखता नहीं कोई ज़र्रा आफताब सा!
बियाबाँ सी महफ़िल , अंधेरो में खोयी,
क्या चलेगा कोई संग मेरे .. कोई मेरे हमसफ़र सा!
आँख खुलती नहीं , लहू इस कदर है देख लिया,
क्या दोनों में से एक का भी दिल नहीं था इंसान सा!
दिल की कही .. अब तक ना सुन सका , ना कर सका,
अपनी ही करनी पे रोता.. मैं कमबख्त बदनसीब सा!
सोचता हूँ क्या किसी की .. अर्ज़ अब सुनेगा वो,
वो (खुदा) भी होगा आजकल .. शायद कुछ मसरूफ सा!
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एहसास Feeling
ReplyDeleteग़मगीन Full of sorrow
खामोश Silent
फलक Sky
ज़र्रा Particle
आफताब Moon
बियाबाँ Desserted
अर्ज़ Request
मसरूफ Busy