जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Thursday, September 9, 2010
आपकी आँखों में बस...
कल रात, बहुत देर तक हम उन्हें सोचते रहे....
खुली आँखों के उजले सपनो में उन्हें ताकते रहे!
पड़ी सूरज की किरण आँखों पे तो पता चला सुबह हो गयी.......
हम आखिरी किरण के जाने तक, फिर पुरानी यादें ताज़ा करते रहे!
आँखों के बारे में सोचा तो हम नींद ही भूल गए,
छलके जो आब-ए-दीद, उनका भी पता ना चला..
हर लम्हा हर घडी वो देखती रही एक टक मेरी ओर....
उनमें डूबकर हमे इस दुनिया के पहरों का भी पता ना चला!
अश्को से लिखी, हमने उन आँखों की बातें,
ना जानी, ना समझी किसी ने... लिखी कुछ ऐसी बातें
रंग, साज़, खूबसूरती ....... और क्या होंगे इन से बढकर
बस खींच लेती हैं, मुझे खुद में.. आपकी वो दो आँखें!
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आब-ए-दीद - Tears (Water of eyes)
ReplyDeleteअश्को - Tears