जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Friday, May 21, 2010
अब मैं बस... यही करता हूँ!
मेरे अलफ़ाज़, मेरी हकीक़त...... अब उनके कानो तक नहीं पहुचती,
इसलिए..... मैं दवात-ए-स्याही बर्बाद करता हूँ।
खून-ए-जिगर बन के आंसू.....बह चला आँखों से,
इसीलिए...... " उन " लम्हों को संजोकर, अब मैं हंसा करता हूँ।
इश्क था आप से तब भी.......अब भी........और.... ताउम्र रहेगा,
मैं आपकी यादो को, अपना हमसाया बना कर फिरता हूँ।
कल मर जाउंगा तो जल के भी...राख से आएगी तेरी ही खुशबु,
मैं आज भी, तुझे सीने से लगा कर सोता हूँ।
हो जाऊ मैं कितना भी आगे, मैं कितना भी सफल,
बिन तेरे मैं खुद को............अधूरा ही पाता हूँ।
मैं कमज़र्फ..खड़ा एक तरफ, सहता अकेले ये वक़्त के थपेड़े,
मैं ये तनहा सफ़र, .............अब तेरे साथ तय करना चाहता हूँ!
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अलफ़ाज़ - words
ReplyDeleteहकीक़त - Truth
दवात-ए-स्याही - ink
खून-ए-जिगर - blood
लम्हों - moments
ताउम्र - whole life
राख - Ash
कमज़र्फ - Weak and lonely