Saturday, February 27, 2010

फितरत-ए-इश्क


हैं.. दिल में जो बात, मैं जुबान पर लाना चाहता हूँ.
मैं बिन बहके, तेरे आगोश में समा जाना चाहता हूँ,
आँखों में तेरी भी प्यार हैं, ये मैं भी जानता हूँ...
मैं अपनी आँखों में समाकर, तुझे जग से छुपाना चाहता हूँ!!

हैं.. दिल ............................................................ जाना चाहता हूँ,

तेरी हर बात, मुझे तेरा रकीब बनाती जा रही हैं,
हर घडी , हर लम्हा तेरे करीब लाती जा रही हैं..
इस कशिश से में कैसे खुद को छुडाऊ,
मैं अब तुझे अपने दिल, जिस्म और रूह में मिला लेना चाहता हूँ!!

हैं.. दिल ............................................................ जाना चाहता हूँ ,

तेरी ख़ुशी, तेरी ही हंसी-- ये अरमान है मेरा,
हो चाहे, इस से कोई नुकसान ही मेरा,
तुझे ना हो कोई गम, ना अफ़सोस इस ज़िन्दगी में,
मैं अपनी खुशियाँ-ए-ज़िन्दगी तेरे नाम कर जाना चाहता हूँ!!

हैं.. दिल ............................................................ जाना चाहता हूँ ,

जिस चीज़ को मैने चाहा, वो शायद अब दूर जा रही हैं.
दिल में हैं पाने की आरज़ू, पर होठो पे नहीं आ रही हैं,
मिल जाए अगर मुझे वो...जो लिखता हैं सबकी तकदीरें,
मैं लड़ के उस से, तुझे अपने नसीब में उतरवाना चाहता हूँ..!!

1 comment:

  1. रकीब - follower
    कशिश - attraction
    आरज़ू - Wish

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