जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Tuesday, September 25, 2012
अब कैसे दिल को समझाए...
हमें तो लगा की कुछ लम्हे सरक रहे हैं ,
जाने ये , कई साल .. कैसे गुज़र गए!
रंज-ए-तन्हाई का कोई सबब ना मिला ,
कई बेवफा रातो के गुमनाम पल , यूँ ही हम से विदा हो गए!
बरसात की एक रात में , मेरे कातिल मुझ से मिलने आये ,
भीगे दिल , नाम आँखें लिए .... वो यूँ ही चले गए!
रात ख्वाब में , एक जाम और उस में मदमस्त मय दिखी,
पी के प्याला जो कदम लडखड़ाये , सारे जाम मुझे छोड़ के चले गए!
मांझी की दीवारों पे कुछ यादो की तस्वीरे अब भी टांग रखी हैं ,
यार तो सब चले गए , सिर्फ सुराख -ए-दिल ही बाकी रह गए!
मुस्कुराती सी तेरी हर बात और .. तेरे वो नगमे ,
हम बढ के भी आगे .... अपनी राहो में , अपने साए को तेरी नज़र कर गए!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सरक - Crawl
ReplyDeleteरंज-ए-तन्हाई - sorrow of departures
कातिल - Murderer
टांग - Hang (as per phrase)
सुराख-ए-दिल - Holes in Heart
Shubahaan Allah, kis barsaat ki raat ka jikr hai is gazal me?
ReplyDelete