Friday, July 6, 2012

तलाश-ए-हमसफ़र





अभी सर्दी की धूप सी, कुछ हलकी सी... बन रही हैं,
होगी तू जब सामने... मेरी तकदीर बन जायेगी!

ख्वाबो में कभी-कभी.. तेरा अक्स बनाने की कोशिश की हैं,
जाने कब तलक, वो तस्वीर पूरी हो पाएगी!

सूरत ले के निगाहों में, चल पड़ा हूँ मैं राहो पे,
लगता हैं ये राहे ही .. अब मेरी मंजिल बन जायेंगी!

आती-जाती राहो पे, मैं तेरे निशाँ ढूंढता हूँ,
सफ़र से हमसफ़र.. जाने कब ये हो पाएगी!

हसरतो की गुलशन में, इमारते तो बहुत बन रही हैं,
होगी तू साथ तो, इन इमारतों में छते भी बन जायेगी!

2 comments:

  1. तकदीर - Fate
    अक्स - Image
    तस्वीर - Photo
    मंजिल - Destination
    हसरतो - Desires
    गुलशन - Dream Place/Rose Garden
    इमारते - Buildings
    छते - Roof

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  2. Bahut hi touchy hai yaar.......apne humsafar se itni ummid mat rakh :)

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