जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Wednesday, August 15, 2012
संग्राम
राहें सुनसान हैं,
लोग अनजान हैं.
मगर , चल रहा हैं सफ़र
कभी तो मंजिल मिलेगी !
थक रहे हैं कदम
ना बचा कोई हमदम
रात हो गयी स्याह और,
कभी तो रौशनी मिलेगी !
वक़्त ने भी कहा,
कुदरत का कहा ....भी नहीं सुना,
करता रहा जो मन करा
कभी तो मेरी जीत होगी!
पानी फिर चढने लगा
धैर्य मेरा टूटने लगा
फिर से थोड़ी और हिम्मत करूं,
शायद तभी पूरी ताबीर होगी!
रोज़ लड़ रहा हूँ मैं,
थोड़ा और कट रहा हूँ मैं ,
देख मेरा बहता लहू और टपकता पसीना ,
शायद मेरी परेशानियाँ भी ... घबरा जाती होगी!
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सुनसान - DESOLATE
ReplyDeleteअनजान - Strange
स्याह - Dark
धैर्य - Patience
ताबीर - Dreams
लहू - Blood
पसीना - Sweat
घबरा - To bewilder