जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Sunday, August 26, 2012
करनी... भरनी !
हर गुनाह की एक सज़ा मुक़र्रर होती हैं,
हर किसी को इसी दुनिया में .....वो ....सज़ा मिलती हैं!
कितना ही कोई भाग ले नसीब से... ज़िन्दगी से,
खुद के ज़मीर की नसीहत सबको मिलती हैं!
अच्छे-बुरे सभी कर्मो का.. लेखा यहीं निकलता हैं,
बदी को आंसू .. और नेकी को शोहरत.. यही मिलती हैं!
कोई कितना भी हो जाए.. आदी इस जान का,
ये ज़िन्दगी, अंत में .. आगाह किये बिना.. सज़ा दे जाती हैं!
जहां-पनाह, आलम-ए-आलम देखे.. फकीरों की फटी चादर भी देखी ,
पर जाना कि.. सूरज की रोशनी और चाँद की चांदनी.... सबको बराबर मिलती हैं!
आसरा बारिश ने दिया.. तो कहीं आतिश ने भी सहारा दिया,
खुदा कि खुदाई में.. बन्दों को हर ज़र्रे में बशर मिलती हैं!
"अज़ल" से डरो नहीं, ये एक अजब सी खामोशी हैं,
सबसे बड़ी सुकून-ए-ज़िन्दगी.... उसी की बदौलत मिलती हैं!
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मुक़र्रर - Destined
ReplyDeleteज़मीर - Inner Self
नसीहत - Advice
आदी - Habitual
आगाह - Warn
आसरा - Shelter
आतिश - Fire
अज़ल - Death