जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Monday, February 6, 2012
मेरे फलसफ़ो का फलसफ़ा
मिले गर कोई रास्ता, तो वो रास्ता बता देना,
ना लगे कुछ मुनासिब, तो मेरा फलसफ़ा सुना देना!
इख्तिलाफात कहाँ से मिटते ख्यालो के मेरे,
मेरी ये मसरूफियत, ज़रा वक़्त को.. तुम बता देना!
आब-ओ-दाना की तलाश में, कभी इधर गिरा.. कभी उधर,
कभी संभले, तो इस भागते शहर को भी बता देना!
लाजिमी हैं मेरा हर एक मोड़ पर इंतज़ार करना,
कोई जा के मेरे कातिल को मेरा पता बता देना!
मेरा दुःख ही मेरी पहचान है अब,
मिले जो कभी 'वो", उनका एहसान है ये.. बता देना!
मैंने अपनी अताओ में उनका भी ज़िक्र किया था,
मिले जो मेरे बिछड़े दोस्त, उन्हें मेरी कलमे सुना देना!
मेरे ही नसीब को इतना स्याह लिखना था,
मिले जो खुदा .. तो उसे भी मेरा सवाल बता देना!
न मैं आबिद, ना ही काफिर हूँ मेरे मौला,
एक अदना इंसान हूँ, इंसानियत को ये बता देना!
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मुनासिब Correct
ReplyDeleteफलसफ़ा Story
इख्तिलाफात Conflict of Thoughts
मसरूफियत Busy
आब-ओ-दाना Bread and butter(Food)
लाजिमी Valid
स्याह Black
आबिद Beleiver in God
काफिर Non-Beleiver in God
बहुत खूबसूरत गजल
ReplyDeleteDhanywaad Sangeeta jee!
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