जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Saturday, April 20, 2013
मेरा इश्क - मेरे गम
नज़रों का क्या कसूर, यूं ही ये छलक आई हैं,
कसूर तो उनका है, जिन्होंने दिल दुखाया हैं!
उसने तो सरे -आम अपनी ख़ुशियाँ मनाई हैं,
उसी की ख़ुशी के लिए, हमने गम छुपाया हैं!
आसुंओ ने, कभी तन्हाईओं तो कभी शराब ने गम बांटा हैं,
लगता है कभी कभी.. खुदा ने सिर्फ मेरे ही लिए.. मयखाना बनवाया हैं!
लोग पूछ्ते है कि हम ने ये क्या हाल बनाया हैं,
हमने तो सिर्फ इश्क किया था .. अब तो बस उसका ही सरमाया हैं!
ना रोयेंगे... ना तेरा हम कभी इंतज़ार करेंगे,
बस पूछेंगे खुदा से.. दोबारा तुमसे मिले, वो मोड़ कहाँ बनाया हैं?
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नज़रों - Eyes
ReplyDeleteसरे-आम- Publicaly
तन्हाईओं - Solitude
मयखाना - Bar/Liquor place
मोड़ - Cut on road
awesome
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