Wednesday, April 10, 2013

मेरी आवारगी और मैं




कुछ ऐसी मेरी आवारगी है, जो शायद ही किसी के अरमान पूरे कर सके,
वरना हम तो बस इसीलिए सांस लेते है... कि बस एक उसूल पूरा कर सके!

बेपरवाह..बेपनाह.. बेइन्तिहा, इश्क किया जीवन ने,
शायद कोई कमी रह गयी थी कि अपने इश्क का वजूद ना पूरा कर सके!

हमने जिसे नजरो से पूजा, दिल से अपनाया था कल तलक,
आज.. कह तो दिया उन्हें खुदगर्ज़.... पर हरजाई ना मान सके!

आज भी नाम उनका आते ही, दिल में एक उम्मीद सुलग जाती हैं,
बना के भी खुद को आवारा, हम इस दिल को आवारगी ना सिखा सके!

मिलेंगे जो किसी मोड़ पे तो कोई शिकवा ना होगा लबो पे,
बस यही पूछेंगे कि बिन मेरे वो आज तलक जी कैसे सके!

बस यही आखिरी तमन्ना है मेरी .. मेरी कब्र के आखिरी मसीहाओं से,
मेरी आखिरी मिटटी जब भी उडे, उसे उनकी हथेलियाँ नसीब हो सके!

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