जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Tuesday, January 15, 2013
एक बार.. आ के तो देख!
आ के मुझ से ज़रा तू मिल के तो देख,
आँखों से मेरी.. पूछ के तो देख,
दूर खड़े तुम क्या समझोगे
आ के मुझे मयखाने में देख!
आती जाती ऋतुए बदली,
मेरी तलब ना.. सुरूर मिटा,
तुमको क्या मालूम.... क्या ये होगा,
आ के मेरी तू.. मस्ती तो देख!
ठोकर और तन्हाई मिली
थोड़े आंसू और खुशबु,
किसको छोड़ा... किसको रखा..
आ के दिल-ए-अलमारी तो देख!
दीवारे खड़ी करती दुनिया,
दिलो की भी अब.. तंग होती गलियाँ
पूछ ना मुझ से किसने तोड़ा,
आ के मेरा पैमाना देख!
दूर खड़े तुम क्या समझोगे
आ के मुझे मयखाने में देख!
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मयखाने - Bar
ReplyDeleteऋतुए - Seasons
तन्हाई - Loneliness
खुशबु - Good Smell
पैमाना - Glass/Peg