जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Wednesday, July 17, 2013
तेरा खुदा-मेरा खुदा
क्या मेरे काफिर होने से तेरे खुदा को कोई गुरेज़ होगा,
आखिर मुझे भी तो ... उसने ही अपने हाथों से बनाया होगा!
मानने वालो का कहना है की हर शह में वो रहता हैं,
क्या मुझे रुलाने वालो ने, इतना भी ना जाना होगा!
बुत-परस्तों का मुझे यूँ नादानों की तरह पत्थर मारना,
उनका खुदा भी तो ... कहीं इन में ही रहता होगा!
काबा किये, मदीने गए, पढी इन्होने कई आयतें,
क्या ना देख पाने वालो को, खुदा ने काफिर बनाया होगा!
फक्र है उनको अपने मुस्तकबिल पर, जो खुदा को अपना कहते हैं,
क्या उन्होंने खुद की मुट्ठी को, खुदा की दरियादिली से बड़ा माना होगा!
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काफिर - Non-follower of God
ReplyDeleteगुरेज़ - Problem
शह - Thing
बुत-परस्तों - One who do idol worship
पत्थर - Stone
मुस्तकबिल - Fate
मुट्ठी - Closed fist
दरियादिली - Whole heartedness