जो देखा, वो लिखा...... यूँ ही अपना सफ़र चलता रहा!
सीखा जो सिखाया... मैं यूँ ही बस चलता रहा!
करने को तो, मैं भी रहगुज़र कर सकता था किसी एक कोने में,
पर मेरा सफ़र........
हर मोड़ पर, मुझे हर बार एक नया एहसास सिखाता रहा!
Saturday, June 22, 2013
चाहत की इंतिहा
तुझे कुछ इस कदर अपने दिल से मांग के चाहा हमने,
अपने अधूरेपन के हर आखिरी हिस्से से तुम्हे चाहा हमने!
आँखों के आँसू ... तेरी यादों में सब सूख चुके थे,
लहू को आंसू बनाकर, फिर से यादो को गले लगाया हमने!
दिल की बस्ती, गम का मंज़र और मैं भटकता आवारा,
तेरे नाम का सहारा लेकर, फिर बेखुदी का कदम बढाया मैंने!
किसी ने किनारा किया तो किसी ने सिर्फ रंग दिखाए,
तेरे नाम का सहारा लेकर, उन सबसे किनारा किया हमने!
अब वो भी नहीं रहा मेरा, जिसे सब खुदा कहते हैं,
होगा भला सोच के.. इस बार सदके में तेरे नाम को अपनाया हमने!
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कदर - Limit
ReplyDeleteअधूरेपन - Emptiness
आखिरी - Last
मंज़र - Scenario
आवारा - Maverick person
किनारा - Sidelined
सदके - Prayer