Sunday, October 30, 2011

कुछ खोया हुआ सा मैं



हो के तनहा, मायूस... एक कोने बैठा हुआ हूँ मैं,
जाने कब से ऐसे ही.. कही खोया हुआ हूँ मैं!

नज़र से कैसे हटाऊ.. दिल में बसा है जो,
हर एक चेहरे को.. बस तुझ सा ही पाता हूँ मैं!

परवाज़ हैं जिगर में, और हौसला भी इस दिल में,
बस तमन्ना का धागा .. तुझ से जुडा पाता हूँ मैं!

बसर क्या कहीं करू, बेनाम सा ही फिरता हूँ,
हर बार खुद को.. तेरे ही दर पे खडा पाता हूँ मैं!

कुछ नहीं हैं अगर अब भी.. तेरे मेरे दरम्यान,
क्यों खुद को अब भी तुझ से जुडा पाता हूँ मैं!

दिल, अक्स तो दिया, अब ये तन्हाई नहीं दूंगा,
दे के कुछ भी तुझको... कुछ नहीं रख पाता हूँ मैं!

तनहा तो ना था, जब साथ तेरा था,
हो के दूर तुझ से.. खुद से खो गया हूँ मैं!

2 comments:

  1. खोये खोये से एहसास अच्छे से अभिव्यक्त किये हैं .

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  2. तनहा Lonely
    मायूस Disappointed
    परवाज़ To rise
    हौसला Confidence
    तमन्ना Wish/Desire
    धागा Thread
    बसर Stay
    दरम्यान In between

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