Sunday, October 23, 2011

नज़र-ए-मोहब्बत

हमने हर रोज़ तुझे.. झरोखों के कोनो से देखा,
तुझे क्या मालूम, हमने तुझमें अपना मुकम्मल जहां देखा!

वो ढलती शामो की ... बांहों में बैठकर... मेरा तुझे निहारना,
हमने खुदा की नक्काशी का, तुझी में, सबसे हसींन रूप देखा!

वो तेरे साथ... हँसना, उठना, बैठना.. रहना,
हमने उस रोज़ खुदा को .... हम से रंज करते देखा!

हर आवाज़ में ... तेरी ही बातें सुनाई देती थी,
हमने सुकून को .. कानो के रास्ते.. दिल में उतरते देखा!

कभी कभी तेरा हमसे खफा रहना... और दूरियां बढा लेना,
हमने उन लम्हों को .. सदियों से भी लंबा होते देखा!

ज़िन्दगी को हमने... ज़िन्दगी.... तेरे आने से ही जाना,
तेरे साथ.. हमने हर एहसास को ... ज़िन्दगी की किताब बनते देखा!

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