क्या तुमने अपनी हसीँ यों जाया की हैं?
तो क्यों उस मासूम के हाथो को छलनी करवाया!
अपनी तो हर जिद के लिए तुमने दुनिया झुका दी,
फिर क्यों तुमने उसकी दुनिया से बचपन निकलवाया!
वो भी एक सपना लिये जागता था... एक विश्वास रखता था,
क्यों तुमने उसकी उम्मीदों को उसका ही खोया ख्वाब बना दिया!
फितरत में उसकी कुछ नादानियां थी.. ज़ेहन में कुछ शरारते थी,
पर तुमने सबको हटाकर, उसकी हथेलियों .. कंधो पे बोझ डाल दिया!
उसका मन था परदे सा, बिना किसी रंग या तस्वीर का,
तुमने क्यों उस परदे पे, उसी का स्याह रंग उड़ेल दिया!
अपनी हंसी को तुमने ख़ुशी का एहसास.. एक याद बना के रखा,
पर उसके हंसने को उसकी मजबूरी का तमाशा बना दिया!
अपनी औलाद के एक जिद्दी आंसू के लिए तुमने तारे भी ज़मी-दोज़ कर दिए,
और किसी मासूम की आत्मा में तुमने आंसूओ के सैलाब पैदा कर दिया!
अपने रब से तुमने सदा अपनों की सलामती मांगी,
और .. उस मासूम का तू ... खुद ही खुदा बन गया!
मासूम - Innocent
ReplyDeleteजिद - Insistance
बचपन - Childhood
ख्वाब - Dream
फितरत - In habit
नादानियां - Ignorance
ज़ेहन - Mind
शरारते - Naughty acts
स्याह - Dark
औलाद - Child
ज़मी-दोज़ - Buried under ground
आत्मा - Soul
सलामती - Well wishes